सरकारी भूमि का मुआवजा देने से इन्कार नहीं कर पाएंगी प्रोजेक्ट एजेंसियां, लेकिन होना चाहिए ये रिकॉर्ड

Himachal News Project agencies will not be able to refuse to pay compensation for government land

सरकारी भूमि पर बने घर और दुकान अगर फोरलेन निर्माण की जद में आ रहे हैं तो प्रोजेक्ट एजेंसियां कब्जाधारक को स्ट्रक्चर का मुआवजा देने से इन्कार नहीं कर सकतीं। बशर्ते सरकार भूमि पर कब्जे की राजस्व रिकॉर्ड में एंट्री हो या संबंधित कब्जाधारक पंचायत को गृहकर देता हो। नियमों के अंतर्गत सिर्फ उन परिवारों को मुआवजे नहीं मिल सकता, जिनकी न तो राजस्व रिकॉर्ड में कब्जे की एंट्री है और न पंचायत को हाउस टैक्स देते हैं। दरअसल पिछले दो सालों से मटौर से शिमला और पठानकोट से मंडी के लिए फोरलेन निर्माण का कार्य चल रहा है।

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने टेंडर अवार्ड करने के बाद विभिन्न निर्माण कंपनियों को फोरलेन निर्माण का कार्य सौंपा हुआ है। इसके अलावा मनाली से किरतपुर और पांवटा में भी फोरलेन का निर्माण हुआ है। निर्माण कार्य के दौरान सरकारी भूमि पर बने सैकड़ों घरों और दुकानों पर बुलडोजर तो चला दिए गए, लेकिन प्रभावितों को यह कहकर मुआवजा नहीं दिया गया कि यह स्ट्रक्चर सरकारी भूमि पर बने हैं। राजस्व विभाग और कानून के जानकार बताते हैं कि भले मकान और दुकान सरकारी भूमि पर हैं, लेकिन राजस्व रिकॉर्ड में कब्जे की एंट्री है या संबंधित परिवारों ने पंचायतों का टैक्स का भुगतान किया है तो वह मुआवजे के हकदार हैं। मुआवजा न मिलने पर कांगड़ा के कुछ परिवार न्यायालय का रुख करने को तैयार बैठे हैं।

कुछ इस तरह के बदलाव के बाद मुआवजे से वंचित हुए लोग
वर्ष 1972 से पूर्व अधिकतर सरकारी भूमि पंचायतों के अधीन थी। उस समय जो लोग सरकारी भूमि पर काबिज थे, संबंधित भूमि पंचायत देह के अंतर्गत थी। पंचायतों के पास भूमि का मालिकाना हक था और लोग पंचायतों को हाउस टैक्स देते थे। लेकिन वर्ष 1998 में हिमाचल प्रदेश सरकार ने कुछ संशोधन करते हुए पंचायत देह भूमि को अपने अधीन कर लिया और कई कब्जाधारियों की राजस्व रिकॉर्ड में बिला सिफत के अंतर्गत एंट्री हो गई। बिला सिफत यानि कोई लगान न देना। अब जब फोरलेन बन रहा है तो बिला सिफत की एंट्री के कारण कई परिवार स्ट्रक्चर मुआवजे से महरूम रह गए हैं। जबकि राजस्व रिकॉर्ड में एंट्री को ठीक किया जाना बहुत जरूरी है।

फोरलेन निर्माण के कारण जिन लोगों के घर और दुकानें टूटी हैं, उन्होंने मुआवजा की मांग की है। अगर सरकारी भूमि पर काबिज परिवार के घर या दुकान की एंट्री राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज है और अगर वह पंचायत को टैक्स देता रहा है तो ऐसे परिवार स्ट्रक्चर के पात्र हैं। प्रभावितों को किस तरह से मुआवजा प्रदान किया जाए, इस बारे में राजस्व रिकॉर्ड का अध्ययन किया जा रहा है- हेमराज बैरवा, उपायुक्त कांगड़ा

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