हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर में हुआ एक विवाह पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है। वजह से दुल्हन एक और दूल्हे दो। ये विवाह जोड़ीदारी प्रथा के अनुसार हुआ है। बता दें कि क्षेत्र में चार प्रकार के विवाह और प्रचलित हैं।
देवभूमि हिमाचल प्रदेश अपनी अलग संस्कृति व रीति रिवाजों के लिए प्रसिद्ध है। यहां हर जिला में अपनी अलग व खास तरह की संस्कृति है। हाल ही में जिला सिरमौर के शिलाई में एक विवाह भी इसी कारण देशभर में चर्चाओं में है। यहां जोड़ीदारी प्रथा के अनुसार, दो सगे भाइयों ने एक ही दुल्हन से सात फेरे लिए हैं। हालांकि क्षेत्र में चार प्रकार के विवाह और प्रचलित हैं।
इसमें पहली प्रथा ‘बाला विवाह’ है। इस प्रथा में लड़की के गर्भ में होने या दूध पीती बच्ची होने पर ही विवाह की बात पक्की कर ली जाती थी। बड़े होने पर दोनों पक्षों की सहमति के बाद उनकी शादी करवाई जाती थी। इस विवाह में सात फेरों का चलन नहीं था और दहेज के रूप में पीतल के बर्तन दिए जाते थे। लड़की को इस बात की स्वतंत्रता थी कि वह किसी कारणवश अपने ससुराल में या पति से संतुष्ट नहीं होने पर खीत-रीत पूरी होने पर संबंध विच्छेद कर सकती थी। इसमें तय की गई राशि पति को देने का प्रावधान था।
दूसरी तरह का है जाजड़ा विवाह। इस प्रथा में, शादी का प्रस्ताव वर पक्ष की तरफ से होता है। लड़की और उसके परिजनों की स्वीकृति के बाद विवाह की रस्में पूरी की जाती हैं। वर पक्ष द्वारा निर्धारित एक व्यक्ति दुल्हन के घर जाता है और दूसरे दिन परिवार के सदस्यों और ग्रामवासियों के साथ दुल्हन को लेकर दूल्हे के घर आता है। ब्राह्मण द्वारा दुल्हन और दूल्हे को सीज लगाकर यानी मंत्रोच्चारण के साथ विवाह सूत्र में बांध दिया जाता है।
तीसरी प्रथा में खिताइयो विवाह शामिल है। इस प्रथा में विवाह कर चुकी लड़की ससुराल से संबंध विच्छेद करना चाहे और दूसरी शादी करना चाहती है तो लड़की पसंद करने वाले लड़के पक्ष को लड़की के घर रिश्ते के लिए जाना पड़ता है। इसके बाद लड़की पक्ष के लोग लड़के के घर जाते हैं, जिन्हें खितारु कहा जाता है। विवाहिता के पिता के माध्यम से खीत की राशि निर्धारित की जाती है, जो प्रस्तावित पति पक्ष को उस औरत के पहले पति को देनी होती है।
चौथी प्रथा हार विवाह है। इस प्रथा में जब कोई महिला दूसरे विवाह की इच्छा से अपने पिता या पति के घर से किसी अन्य व्यक्ति के साथ फरार हो जाती है, तो वह हार विवाह कहलाता है। ऐसे विवाह में खीत-रीत राशि बाद में तय की जाती है और महिला को भगा कर ले जाने वाले व्यक्ति को अर्थदंड अलग से देना पड़ता है, जिसे हरोंग कहते हैं। इन विवाह प्रथाओं में कुछ विशेषताएं और नियम हैं, जो इनके प्रचलन को विशिष्ट बनाते हैं। इनमें से कुछ प्रथाएं आज भी प्रचलित हैं, जबकि कुछ का प्रचलन कम हो गया है।
सिरमौर जिले के शिलाई क्षेत्र में हाल ही में बहुपति प्रथा के अनुसार हुए विवाह की चर्चाओं में आने के बाद संबंधित परिवार तंग हो गया है। देशभर से मीडिया, सोशल मीडिया व लोगों के फोन के चलते परिवार अब कोई सवाल-जवाब नहीं चाहता।
सोमवार को जब मीडिया की टीम नई नवेली दुल्हन व दो दूल्हों के घर पहुंची तो दुल्हन हल्की बारिश में आंगन की सफाई करती दिखी। एक दूल्हा घर की सीढि़यों के पास मिला तथा दूसरा भीतर कमरे में बैठा था, जहां उनकी माता बिला देवी अपने बीमार पति बलदेव नेगी को भोजन करवा रही थीं।
मीडिया ने जब दोनों भाइयों व दुल्हन से कुछ सवाल पूछने चाहे तो उन्होंने इसके लिए सहमति नहीं दी। उन्होंने बताया कि मीडिया से बहुत तंग हो गए हैं। उन्हें इतने फोन आ रहे हैं कि पूरे परिवार के लिए जवाब देना परेशानी बन गया है।
बता दें कि शिलाई गांव के दो भाइयों प्रदीप सिंह व कपिल ने कुहन्ट गांव की युवती से जोड़ीदारी प्रथा के अनुसार विवाह किया था। यह शादी हाटी समुदाय की बहुपति परंपरा के अनुसार हुई, जिसमें एक ही पत्नी को दो या अधिक भाई साझा रूप से अपनाते हैं। शादी का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद देशभर में खबरें चल रही हैं। परिवार से मिलने व इस सबके बारे में जानने के लिए दूर-दूर से सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर व मीडिया टीमें पहुंच रहीं हैं।