किन्नौर-कैलाश का अनछुआ संसार अद्भुत और अत्यंत रहस्यमयी है। पंच कैलाशों की सबसे दुर्गम यात्राओं में से एक यहां आस्था के साथ-साथ साहस की भी परीक्षा है। तांगलिंग से शुरू सफर में जंगल, उफनती नदी, ग्लेशियर और पथरीले रास्ते सिरहन पैदा करते हैं। पार्वती कुंड के पास अलौकिक ध्वनियां आपको झकझोरती हैं जबकि करीब-करीब 90 डिग्री एंगल पर कैलाश पर्वत चढ़ने के रोमांच को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।
चंडीगढ़-किन्नौर नेशनल हाईवे पर तांगलिंग गांव से रोमांचक सफर शुरू है। बेस कैंप पर हिमाचल समेत बाहरी राज्यों जैसे राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, जम्मू के लोग कतार में हैं। धीरे-धीरे यात्री गणेश पार्क यानी अगले पड़ाव को निकल रहे हैं। पोवारी पुल पार कर गांव से निकलते हुए छह घंटे की चढ़ाई, घने जंगल पार कर गणेश पार्क पहुंचना सुखद अहसास है। शिमला के युवाओं का एक ग्रुप धीरे-धीरे चढ़ाई चढ़ रहा है। कपूर की गोलियां बार-बार सूंघकर रास्ता तय कर रहा है। दिल्ली का एक दंपती 10 कदम चलकर दो मिनट आराम कर रहा है। दोनों की हालत खराब है, लेकिन दर्शन किए बगैर लौटने को तैयार नहीं। ऐसे ही किस्से देखते-सुनते गणेश पार्क का रास्ता तय हो गया।
हालांकि साथ चल रहे चार पहले यात्रा कर चुके किन्नौर के संजीव टोक्न्या ने बताया कि असली परीक्षा इसके आगे है। गणेश पार्क में सभी यात्री खाना खाकर अगले कड़े सफर से पहले कैंप में आराम कर रहे हैं। रात ठीक दो बजे सभी यात्री किन्नौर कैलाश के अपने अगले सफर पर निकलते हैं। हाथ में टॉर्च या मोबाइल, रेनकोट पहने यात्रियों का आधी रात में कूच रोमांचक है। धुंध के मौसम में हमेशा लगता है कि बारिश होने वाली है। अभी चलते हुए 20 मिनट हुए होंगे कि पानी बरसना शुरू हो गया। खतरनाक संकरे रास्ते पर करीब डेढ़ घंटा चलने के बाद कानों में नदी का शोर है। लग रहा है जैसे कोई विशाल नदी पूरे आवेग में बह रही है।
पता चला कि यह नदी किन्नौर-कैलाश से आ रही है जिसे पार करना है लेकिन कोई पुल नहीं और न ही कोई रस्सी है। एक दूसरे का हाथ पकड़कर पहले उफनती नदी, फिर डरते-डरते ग्लेशियर पार किया। इसके बाद गणेश गुफा होते हुए सीधी चढ़ाई संकरे रास्ते से होते हुए पार्वती कुंड को बढ़ते रहे। यहां हर चढ़ाई या उतराई को पार करने के बाद एक नया अद्भुत नजारा है। कहीं चरागाहनुमा ढलान है लेकिन वे इतनी गहराई तक जाती हैं कि देखते हुए डर लगता है। हालांकि यहां तक का सफर रात के अंधेरे में कटता है जिस कारण पता ही नहीं चलता कि नीचे कितनी गहरी खाई है।
गणेश गुफा से करीब तीन घंटे तक चलने के बाद आप पार्वती कुंड के रास्ते की चट्टानें पार करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। बहुत ही चुनौतीपूर्ण रास्ते पर चलना एक बड़ी चुनौती है। पार्वती कुंड में ग्लेशियर का ठंडा पानी आपकी प्यास बुझाता है। कुछ लाेग यहां पूजा करते हैं जबकि कुछ ठंडे पानी से अपनी प्यास बुझाते हैं। यह क्षेत्र एक तरह सक पत्थरों से भरा मैदान है जहां बड़ी-बड़ी चट्टानें-पत्थरों का रास्ता है। सामने केलाश पर्वत दिख रहा है। इस क्षेत्र में कुछ डमरू या पटाखों और हवाओं की संगीतमयी अलौकिक ध्वनियां सुनाई दे रही हैं। कुछ लोगों ने बताया कि इन ग्लेशियरों में पत्थर गिरने का शोर है लेकिन विश्वास नहीं हो रहा है।
दरअसल, यह पूरा क्षेत्र आपको रोमांच से भर देता है। यहां से अब किन्नौर कैलाश शिवलिंग की दुरूह यात्रा है। करीब दो घंटे का यह सफर रोंगटे खड़े करने वाला है। एक तरफ हजारों फीट गहरी खाई और ऊपर पथरीला रास्ता। जरा सी चूक जिंदगी पर भारी है। मंडी के सरकाघाट के बोधराज परिवार और मित्रों के साथ बढ़ रहे हैं कि अचानक ऊपर से किसी गोल पत्थर पर गलत पांव रख दिया और वह पत्थर लुढ़कता हुआ नीचे हमारी तरफ तेजी से आया। अफरातफरी सी मची लेकिन गनीमत रही कि पत्थर किसी चट्टान से टकराकर रुक गया। करीब आधा किलोमीटर की दूरी से किन्नाैर कैलाश के प्रथम दर्शन हुए तो जैसे सारी थकान मिट गई। धीरे-धीरे रेंगते हुए यात्री मुख्य शिवलिंग पहुंचे। हर कोई भावविभोर होकर अश्रुधारा के साथ शिवलिंग दर्शन करते नजर आ रहे हैं। देशभर से पहुंचे लोगों की मनोदशा में शिवत्व का भाव है। भोलेनाथ के जयकारों से कैलाश गूंज रहा है। जरा सा भी कोई भेद किसी की भावना में नहीं दिख रहा। शायद, अनेकता में एकता का इससे सूक्ष्म और सुंदर संदेश कहीं और देखने को नहीं मिलेगा।