32 किमी लंबी टनल खोदकर 23 साल बाद अब बाहर निकलेगी मशीन, जानें पूरा मामला

इंजीनियरिंग के क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला की पहाड़ियों में एक और मील का पत्थर स्थापित हुआ है। भले ही इस लक्ष्य को भेदने में 23 वर्ष का लंबा समय लगा, लेकिन शिलागढ़ की बर्फीली पहाड़ियों को खोदकर नएचपीसी ने ग्रीन एंड क्लीन ऊर्जा के क्षेत्र में कई रिकॉर्ड अपने नाम कर लिए हैं।   पार्वती जल विद्युत परियोजना चरण दो की 32 किमी लंबी हेडरेस टनल की विदेशी मशीन टीबीएम (टनल बोरिंग मशीन) से सफलतापूर्वक खुदाई कर एनएचपीसी ने बड़ी कामयाबी हासिल की है। अभी मशीन को बाहर लाने में एक माह का समय लगेगा। मणिकर्ण घाटी के बरशैणी स्थित पुलगा डैम से टनल को खोदाई शुरू हुई और सैंज स्थित सियूंड डैम तक पहुंची। परियोजना प्रबंधन का दावा है कि टीबीएम से सबसे लंबी टनल की खुदाई का यह विश्व कीर्तिमान स्थापित हुआ है। 23 वर्ष बाद अब विदेशी मशीन को जमीन से बाहर निकालने की तैयारी चल रही है। अटल टनल रोहतांग के निर्माण से कुल्लू जिला में बेहतरीन इंजीनियरिंग की मिसाल कायम हो चुकी है। एनएचपीसी के निदेशक निर्मल सिंह के मुताबिक दो सौ करोड़ की लागत वाली टीबीएम दुनिया की अत्याधुनिक मशीन है। पहाड़ी क्षेत्र में इस मशीन का उपयोग एनएचपीसी ने पहली बार किया है। यहां की कठोर चट्टानी पहाड़ियों को यह मशीन महीने में 800 से 900 मीटर तक काटती है। इस मशीन की खासियत यह है कि पहाड़ी के एक छोर से सुरंग काटते हुए आगे बढ़ती है और दूसरे छोर से बाहर निकलती है। इस बीच टीबीएम मशीन को वापस नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि कि 32 किमी लंबी टनल बनाने का लक्ष्य आसान नहीं था। शीलागढ़ से सिउंड तक की पहाड़ियों को खोदने में काफी समय लगा और कई चुनौतियां सामने आईं। सुरंग बनाने में 2000 करोड़ रुपये का खर्च आया।

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