साल 2005 में पैदा हुआ एक लड़के की उम्र कितनी होगी…महज 15 साल. इतनी सी उम्र में बच्चे क्या करते हैं? पढ़ते हैं, खेलते हैं, दोस्तों के साथ तफरी मारते हैं या फिर मोबाइल मिल जाए तो बस… गेम खेलते हैं. पर इस धारणा को हमारे देश के कुछ बच्चे तोड़ रहे हैं.
ये पढ़ते हैं, खेलते हैं और लोगों को रोजगार भी देते हैं. हम आपको देश के ऐसे ही बच्चों से मिलवाने जा रहे है, जिसने बहुत कम उम्र में ही व्यापार जगत में अपनी सफलता के झंडे गाड़ दिए हैं. ये कहानी है मुंबई के सफलतम व्यवसायी तिलक मेहता की, जिन्होंने केवल 13 साल की उम्र में अपनी खुद की कंपनी खड़ी कर दी और 200 लोगों को रोजगार भी दिया.
पापा की थकान से निकला आइडिय
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जब पिता शाम को ऑफिस से घर पहुंचते हैं, तो हम सबने उन्हें थका हुआ देखा है. उन्हें ऐसा देखकर हिम्मत ही नहीं होती थी कि कुछ डिमांड कर ली जाए. फिर चाहे वो कितनी भी जरूरी क्यों ना हो. खैर, पर ऐसा कभी हुआ है कि पापा की थकान देखकर आपको कोई बिजनेस आइडिया आ जाए? भाई ऐसा सोचने वाले कुछ खास ही होते हैं. जैसे मुंबई के तिलक मेहता.
13 साल के तिलक मेहता के पिता विशाल मेहता एक रोज ऑफिस से थककर अपने घर पहुंचे. तिलक पापा का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. ताकि उनके साथ जाकर वे अपनी जरूरी कॉपियां ला सकें. पर जब वो घर जाए तो उन्हें देखकर तिलक की हिम्मत ही नहीं हुई कि वे उनसे बाहर चलने के लिए कह पाते. आखिर उस शाम तिलक को कॉपियां नहीं मिलीं.
हालांकि, इससे उनका कुछ बिगड़ा नहीं. हां! ये ज़रूर समझ आ गया कि ऐसी दिक्कत तो कई और घरों में भी होती होगी. बच्चे तो बच्चे, कई बार तो घर की महिलाएं भी इसी इंतजार में बैठी रहती हैं कि कोई उन्हें बाहर ले जाए और वे अपना काम करके आ सकें.
बस यहीं से तिलक के दिमाग में एक शानदार बिजनेस का आइडिया आया. ये बिजनेस था कोरियर का. अब आप सोचेंगे कि इसमें नया क्या है? दरअसल, तिलक ने कोई ऐसी-वैसी कोरियर सर्विस के बारे में नहीं सोचा. बल्कि सबसे फास्ट यानि केवल 24 घंटे के भीतर डिलेवरी देने वाली सर्विस शुरू करने पर विचार किया. ये सर्विस खासतौर पर बच्चों और घर की महिलाओं के लिए तैयार होनी थी.
पापा ने दिया साथ, आसान हुई राह
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तिलक ने सबसे पहले इस आइडिया का जिक्र अपने पापा से किया. बाकी टिपिकल पापाओं की तरह नहीं कि बच्चे ने आइडिया दिया और उन्होंने हंसकर टाल दिया. बल्कि विशाल मेहता ने तिलक की तारीफ की और उसके आइडिया को बिजनेस का रुप देने के लिए बैंक पहुंचे. जहां बैंक अधिकारी घनश्याम पारेख से उनकी मुलाकात हुई.
जब तिलक ने घनश्याम को अपने आइडिया के बारे में बताया तो वो बहुत खुश हुए. इतना खुश की अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर तिलक की कंपनी ज्वाइन कर ली. कंपनी का नाम पंजीकृत किया गया. और ये नाम कहलाया पेपर एंड पेंसिल. जी हां, नाम भी ऐसा जो हमेशा याद दिलाए कि तिलक ने इस कंपनी को कैसे शुरू किया.
खैर तिलक बने कंपनी में मालिक और घनश्याम पारेख बने सीईओ. शुरुआत बहुत छोटी हुई. यानि बिना ज्यादा खर्च के केवल बुटीक, स्टेशनरी शॉप वालों से बात की गई. डिलेवरी के लिए अलग से स्टाफ नहीं बनाया बल्कि मुंबई के डिब्बासर्विस वालों से मदद ली गई.
तिलक ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि डिब्बेवालों ने उन्हें छोटा बच्चा समझा और बहुत प्यार से मेरी बात मान ली. उन्होंने ने तो शुरूआत में पैसे की डिमांड भी नहीं की. शुरूआत में स्टेशनरी शॉप से सामान लेकर स्कूल, कोचिंग सेंटर और बच्चों के घरों तक पहुंचाने का काम किया. जब लोगों का अच्छा रिस्पांस मिला तो बुटीक, पैथलॉजी लैब और ब्रोकरेज कंपनियों से बात की गई.
अब स्विगी और जोमेटो से होगा समझौता
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तिलक ने दो साल पहले कंपनी पेपर एंड पेंसिल को शुरू किया था. जिसमें अब 200 से ज्यादा कर्मचारी काम कर रहे हैं. इसके अलावा मुंबई के 300 डिब्बेवाले भी इस कंपनी का हिस्सा है. इन्हें 40 से 180 रुपए तक प्रति डाक मेहनताना दिया जाता है.
इस कंपनी का सालाना टर्नओवर 100 करोड़ रुपए है. कंपनी हर रोज करीब 1 हजार ऑर्डर पूरे कर रही है. तिलक की योजना है कि अब वह जल्दी ही स्विगी और जोमेटो जैसी कंपनियों से समझौता करेगी. मुंबई जैसे महानगर में एक छोर से दूसरे छोर तक कम समय में जरूरत की चीजें पहुंचाने का यह आइडिया अपने आप में अनोखा और इकलौता है.
फिलहाल तिलक की कंपनी पेपर एंड पेंसिल के सामने कोई नया कॉम्पटीशन नहीं है. पर फिर भी वे अपनी कंपनी को हाईटेक बनाने की पूरी तैयारी कर रहे हैं. ताकि आने वाले सालों में अगर उनका मुकाबला हो तो वे किसी से पीछे ना रहें. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा है कि साल 2020 तक वे कंपनी का टर्नओवर 200 करोड़ तक पहुंचा देंगे.
यानि एक छोटे से बच्चे का आइडिया आज सैकड़ों लोगों को रोजगार दे रहा है. सोचिए जब ये बच्चे खेलने-कूदने की उम्र में ऐसा कमाल कर रहे हैं तो आगे क्या करेंगे…?