अतिक्रमण मामले सुनने वाले अफसरों में न्यायिक प्रक्रिया की समझ कम, पांच दिन का प्रशिक्षण दें

HP High Court: Officers hearing encroachment cases have less understanding of the judicial process

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने अतिक्रमण मामले में जनहित याचिका में महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए। खंडपीठ ने मुख्य सचिव को निर्देश दिए कि 28 फरवरी से पहले ट्रेनिंग से संबंधित उपयुक्त निर्देश दिए जाएं। 15 मार्च तक हलफनामा दायर करें कि नए अतिक्रमण न हों। जो अधिकारी भूमि अतिक्रमण मामलों की सुनवाई कर रहे हैं उन्हें न्यायिक अकादमी में पांच दिनों का विशेष प्रशिक्षण दिया जाए। प्रशिक्षण के दौरान अधिकारियों को कानूनी बारीकियों को सिखाया जाए। अदालत ने पाया कि अधिकारियों के न्यायिक प्रक्रिया की समझ न होने की वजह से आम लोग को न्याय नहीं मिल रहा है। अधिकारियों ने

 कोर्ट के समक्ष तथ्यों को सही तरीके से अवगत नहीं कराया। हाईकोर्ट ने पाया कि बड़ी संख्या  में मामलों की सुनवाई के दौरान 163 औ  सार्वजनिक परिसर भूमि बेदखली एवं किराया वसूली अधिनियम 1971 (पीपी एक्ट) के अधिनियम की धारा 4 के नियमों की अनदेखी की जा रही है। बेदखली और अतिक्रमण की कार्रवाही और आदेश पारित करते वक्त कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं की जा रही है। आदेश देते वक्त कौशल और विशेषज्ञता का अभाव देखा गया है। इसकी वजह से न केवल न्याय में गड़बड़ी पैदा हो रही है बल्कि सरकारी खजाने, राज्य और न्यायालय के संसाधनों और गरिमा को भी नुकसान पहुंच रहा है। ऐसे आदेशों से लोगों का वन/सरकारी भूमि पर अनाधिकृत कब्जे और अतिक्रमण को भी बढ़ावा मिल रहा है। अदालत ने निर्देश दिए कि डिविजन फॉरेस्ट अधिकारी, सहायक कंजरवेटर फॉरेस्ट, डिविजन कमीश्नर और अन्य अधिकारी को प्रशिक्षण दिया जाए

अनुपालना करने में देरी होगी तो उसके लिए उचित कारण अदालत को बताएं
हाईकोर्ट ने 30 दिसंबर 2024 को अतिरिक्त मुख्य सचिव राजस्व को बेदखली और अतिक्रमण के सभी मामलों का निष्पादन जल्द से जल्द और सोच-समझ कर कानून की प्रक्रिया के तहत तय समय सीमा  के अंदर की जाए। अगर अनुपालना करने में देरी होगी तो उसके लिए उचित कारण अदालत को बताएं। प्रदेश सरकार ने वर्ष 2016 में सार्वजनिक परिसर, भूमि बेदखली और किराया वसूली अधिनियम 1971 (पीपी एक्ट) के तहत कार्रवाई शुरू की और सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिसंबर माह में अतिक्रमण से जुड़े करीब 50 ऐसे ही मामलों को वापस हाईकोर्ट भेज दिया था। ऐसे मामलों को फिर से सुना जाने के निर्देश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि इन मामलों की सुनवाई के दौरान तथ्यों को दरकिनार किया गया है। उसके बावजूद भी नए सिरे से मामलों को नहीं सुना जा रहा है।

भविष्य में अतिक्रमण के लिए अधिकारी होंगे जिम्मेदार
 हाईकोर्ट ने साथ ही मुख्य सचिव, राजस्व, वन, जलशक्ति, पंचायती राज, गृह विभागों के प्रशासनिक सचिवों, बिजली बोर्ड के कार्यकारी निर्देशक और एनएचएआई के संबंधित अधिकारियों को सुनिश्चित करने को कहा है कि भविष्य में फिर से ऐसे नए अतिक्रमण न हो, इस बात का ख्याल विभाग रखें। अगर पूर्व अतिक्रमण के सिवाय किसी ने अतिक्रमण किया तो संबंधित अधिकारी इसके लिए जिम्मेवार होगा।

मामले निपटाने के लिए समय सीमा की तय
हाईकोर्ट ने वित्त आयुक्त, सहायक कलेक्टर प्रथम और द्वितीय श्रेणी को लंबित मामलों को समय सीमा के भीतर निपटाने के आदेश जारी किए हैं। अदालत के आदेशों की अनुपालना करने के लिए यह समय सीमा 31 जुलाई, कुछ मामलों में 30 जून और जिनमें वारंट जारी किए गए हैं उनकी 30 मई और कुछ की 31 मार्च 2025 दी गई है।

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