
अब विधायक सड़कों व भवनों के निर्माण के लिए वन भूमि की क्षतिपूर्ति की एवज में एनपीवी और वनीकरण की क्षतिपूर्ति के लिए बजट का भुगतान खुद करेंगे। यानी छोटी परियोजनाओं का एनपीवी विधायक खुद जमा करेंगे। इससे सरकारी विभागों पर दबाव कुछ कम होगा। आमतौर पर यह भुगतान संबंधित महकमों को करना होता है।
विधायक क्षेत्र विकास निधि के तहत वन भूमि पर एफसीए और एफआरए मामलों की नेट प्रेजेंट वैल्यू (एनपीवी) और कंपेनसेटरी अफॉरेस्टेशन की राशि दी जा सकेगी। प्रदेश में सड़क और अन्य विकास योजनाओं के अधर में फंसने के चलते यह निर्णय लिया गया है। हालांकि, इस निधि के तहत हर विधायक को एक वित्तीय वर्ष के लिए दो करोड़ रुपये मिलते हैं। ऐसे में बड़ी परियोजनाओं के लिए इस क्षतिपूर्ति धनराशि का भुगतान नहीं किया जा सकेगा।
इस राशि के समय पर जमा न होने से सड़कों और अन्य आधारभूत ढांचे के कई प्रोजेक्ट अधर में लटके हैं। बजट का प्रावधान वक्त रहते न होने से ऐसा हो रहा है। इस संबंध में प्रधान सचिव योजना देवेश कुमार ने सभी उपायुक्तों को निर्देश जारी किए हैं। इस प्रावधान से सभी विधायकों को भी अवगत करवा दिया गया है।
दरअसल विधायकों की ओर से ही सरकार पर लगातार यह दबाव बनाया जाता रहा है कि उनके क्षेत्र में अटकी योजनाओं के लिए एनपीवी और अन्य मदों की राशि विभाग की ओर से जमा की जाए। इस वजह से उनके क्षेत्र की योजनाएं अधूरी पड़ी हैं। इसी पर राज्य सरकार ने विधायकों को ही यह सुविधा दे दी है कि वे चाहें तो विधायक क्षेत्र विकास निधि का बजट इस मद में खर्च कर सकते हैं। इसके बाद हिमाचल प्रदेश में विभिन्न क्षेत्रों मेें अटकी कई छोटी परियोजनाओं को गति मिल सकती है।
उल्लेखनीय है कि वन संरक्षण अधिनियम (एफसीए) 1980 वनों की कटाई को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया कानून है। वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) 2006 पारंपरिक वन-निवास समुदायों और आदिवासी आबादी के अधिकारों से संबंधित है। वन भूमि पर विकास परियोजनाओं को बनाने के लिए इन कानूनों के तहत मंजूरी ली जानी जरूरी है। मंजूरी मिलने की प्रक्रिया में वन विभाग को एनपीवी और कंपेनसेटरी अफॉरेस्टरेशन के लिए शुल्क जमा करना होता है।