हिमाचल की दृष्टिबाधित बेटियों ने हौसले से दूर किया अंधेरा, युवाओं के लिए प्रेरणा

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हिमाचल की दृष्टिबाधित बेटियों ने साहस, संघर्ष और मेहनत से दुनिया को दिखा दिया कि कुछ भी असंभव नहीं है। इन बेटियों ने न केवल करिअर को संवारा, बल्कि समाज में एक मिसाल भी पेश की। मंडी की प्रतिभा ठाकुर, शिमला की मुस्कान, इतिका और किन्नौर की छोनजिन आंगमो ने साबित कर दिया है कि विपरीत परिस्थितियों में भी हौसले से अंधेरे को दूर कर उम्मीद की लौ जगाई जा सकती है।

मंडी जिले की प्रतिभा ठाकुर दृष्टिबाधित हैं और शिमला के राजीव गांधी डिग्री कॉलेज में राजनीति विज्ञान की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। लिखना और एंकरिंग शौक हैं और उन्हें पीएचडी के लिए नेशनल फेलोशिप प्राप्त है। भारतीय चुनाव आयोग की यूथ आइकॉन, गायिका, अमेरिका में भी अपने गायन की धूम मचाने वाली दृष्टिबाधित मुस्कान नेगी शिमला के प्रतिष्ठित आरकेएमवी में संगीत की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। वह पीएचडी भी कर रही हैं।

जनजातीय जिले किन्नौर की रहने वाली छोनजिन आंगमो पूरी तरह दृष्टिबाधित हैं। 2024 में दिव्यांगता के क्षेत्र में राष्ट्रपति से पुरस्कार प्राप्त करने वाली वह दूसरी हिमाचली बनी हैं। दिल्ली में यूनियन बैंक में कार्यरत आंगमो दिव्यांगजनों की उस टीम में अकेली महिला थीं, जिन्होंने सियाचिन ग्लेशियर पर पहुंचकर विश्व रिकॉर्ड बनाया। प्रधानमंत्री मोदी ने रेडियो पर मन की बात में भी इनकी तारीफ की है। कई पदक प्राप्त कर चुकी आंगमो स्वर्ण पदक विजेता तैराक होने के साथ साइकिलिस्ट, फुटबॉलर और पैराग्लाइडर भी हैं। दृष्टिबाधित इतिका चौहान ने पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में पीएचडी किया और मतियाना के वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में राजनीति विज्ञान की लेक्चरर हैं। उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव कहते हैं कि उच्च शिक्षा प्राप्त कर दृष्टिबाधित एवं अन्य दिव्यांग महिलाओं ने रेलवे, बैंक एवं प्रदेश की सरकारी नौकरी में आकर अन्य युवाओं को भी रास्ता दिखाया है।

दिव्यांग प्रियंका ने महिला जज बनकर रचा इतिहास
हिमाचल प्रदेश न्यायिक सेवा में चयन के बाद पहली दिव्यांग महिला जज बनकर कांगड़ा जिले की प्रियंका ठाकुर ने इतिहास रचा है। इन्होंने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से एलएलएम किया और यूजीसी नेट भी उत्तीर्ण किया। कांगड़ा जिले की निकिता चौधरी हिमाचल प्रदेश की ऐसी पहली व्हीलचेयर यूजर विद्यार्थी हैं जो टांडा मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस कर रही हैं। करसोग की अंजना ठाकुर ने गंभीर शारीरिक दिव्यांगता की कठिन चुनौती से कभी हार नहीं मानी और बॉटनी में सीएसआईआर की जूनियर रिसर्च फेलो बनकर हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में पीएचडी में प्रवेश लिया। वह अब राजीव गांधी डिग्री कॉलेज में बॉटनी की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।

दिव्यांगता को मात देने वाली ये बेटियां भी युवाओं के लिए हैं प्रेरणा
दिव्यांगता को मात देकर मीनू चंदेल कंप्यूटर साइंस की स्कूल लेक्चरर हैं और रंजना व ज्योति यूजीसी की जूनियर रिसर्च फेलो हैं। संगीत में श्वेता शर्मा, राजनीति विज्ञान में काजल पठानिया, हिंदी में रमा चौहान एवं सवीना जहां और शिक्षा विभाग में विशाली ठाकुर जेआरएफ की परीक्षा पास करके पीएचडी कर रही हैं। नेशनल फेलोशिप प्राप्त अंजू विरमानी हिंदी में पीएचडी स्कॉलर हैं। सुंदरनगर की वैष्णवी चुग व्हीलचेयर यूजर हैं और सेरेब्रल पाल्सी के कारण हाथ से लिख भी नहीं सकतीं। यह अत्यंत मेधावी छात्रा जज बनने का सपना संजोए हैं। मंडी की दृष्टिबाधित अंजना कुमारी सुंदरनगर से कंप्यूटर डिप्लोमा में टॉपर हैं और घुमारवीं में सरकारी विभाग में कार्यरत हैं।

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