सुप्रीम कोर्ट ने कहा, राज्य सरकार 1999 की पेंशन योजना निरस्त करने में सक्षम

Himachal: Supreme Court said, state govt is capable of cancelling the pension scheme of 1999

 सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार कर्मचारी पेंशन, पारिवारिक पेंशन, पेंशन और ग्रेच्युटी योजना को निरस्त करने में सक्षम है। शीर्ष अदालत के इस फैसले से हिमाचल के निगमों-बोर्डों के करीब 7 हजार कर्मियों को बड़ा झटका लगा है। शीर्ष अदालत की तीन जजों की बेंच ने बीते दिन एक याचिका खारिज कर दी, जिसमें राज्य सरकार पर 11,500 करोड़ रुपये से अधिक का वित्तीय असर पड़ने की बात कही गई थी।

चिकाकर्ताओं ने हिमाचल स्टेट फॉरेस्ट, सिविल सप्लाई, एचपीटीडीसी, एचपीएमसी और अन्य उपक्रमों के कर्मियों के लिए अप्रैल 1999 में शुरू की गई पेंशन योजना के तहत उन्हें लाभ देने से इन्कार किए जाने वाली अधिसूचना को चुनौती दी थी। सरकार ने वित्तीय हालत की वजह से इस योजना को वर्ष 2004 में बंद कर दिया था। इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान ने की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार इस योजना को वापस लेने के लिए सक्षम है और याचिका को गलत बताते हुए खारिज किया।

हिमाचल प्रदेश राज्य वन विकास निगम लिमिटेड के सेवानिवृत्त कर्मियों ने यह याचिका दायर की थी। पीठ ने कहा कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की दो न्यायाधीशों की पीठ ने माना था कि सरकार ने पूर्ववर्ती पेंशन योजना के तहत पेंशन पाने के अधिकार में कटौती नहीं की है, लेकिन उन्हें इस योजना के तहत अतिरिक्त लाभ नहीं मिलेंगे। पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत लिए निर्णय को अनुच्छेद 32 के तहत चुनौती नहीं दी जा सकती है। यह भी कहा कि शिकायत के लिए उचित रास्ता समीक्षा या उपचारात्मक याचिका है, न कि नई रिट।

कानूनी राय के बाद तय करेंगे आगे की रणनीति : चितरांटा
पेंशनर्स संघ के सदस्य गोविंद चितरांटा ने कहा कि सरकार जब 1,36,000 कर्मियों को ओल्ड पेंशन स्कीम का लाभ दे सकती है तो कॉर्पोरेशन से सेवानिवृत्त करीब 7 हजार कर्मचारी क्यों गले की हड्डी बने हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर अभी पेंशनर यूनियन कानूनी सलाह ले रही है, उसके बाद ही आगे की रणनीति तय होगी।

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