
हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड जैसे हिमालयी क्षेत्रों में पहली बार तितली की एक अनोखी प्रजाति कैडिसफ्लाई की खोज की गई है। डिपार्टमेंट ऑफ जूलॉजी, बीजीएसबी यूनिवर्सिटी राजौरी (जेएंडके) के वैज्ञानिक डॉ. साजद एच. पैरी ने 20 साल के लंबे सर्वेक्षण और शोध के बाद इस प्रजाति का खुलासा किया है। शोधकर्ता का दावा है कि अभी तक देश में कैडिसफ्लाई नामक प्रजाति का कोई डाटा उपलब्ध नहीं था और इसकी संख्या का भी कोई अनुमान नहीं था।
बुधवार को भारतीय प्राणी सर्वेक्षण की 110वीं वर्षगांठ पर सोलन के बड़ोग में आयोजित एक सेमिनार में डॉ. पैरी ने अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया। डॉ. पैरी के अनुसार, देशभर में कैडिसफ्लाई की कुल 1,435 नई प्रजातियों की पहचान की गई है, जिनमें से हिमाचल के लाहौल-स्पीति, किन्नौर और चंबा के ऊपरी क्षेत्रों में लगभग 65 प्रजातियां पाई गईं। यह प्रजाति विशेषकर हिमाचल की नदियों के आसपास पाई जाती है। हालांकि, जलवायु परिवर्तन के चलते इनमें से कई प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी हैं।
कैडिसफ्लाई के लारवा से कुछ देशों में बनाए जाते हैं आभूषण
शोध के अनुसार, कैडिसफ्लाई अंडे देने से पहले एक विशेष प्रकार का शैल बनाती है। अंडों से निकलने वाला लारवा शरीर पर एक मजबूत और रंगीन परत बनाता है। यह इतना कठोर और आकर्षक होता है कि कुछ देशों में इससे आभूषण बनाए जाते हैं। एक छोटी सी माला की कीमत 15,000 रुपये से भी अधिक रहती है।
ट्राउट मछलियों को देंगे तो दो गुना तक बढ़ेगा उनका साइज
कैडिसफ्लाई नदियों के किनारे पाई जाती है, जहां ट्राउट मछली भी सामान्यतः रहती है। शोध में यह भी सामने आया कि ट्राउट मछली यदि नियमित रूप से कैडिसफ्लाई का सेवन करे, तो उसका आकार सामान्य से लगभग दोगुना हो सकता है। वर्तमान में ट्राउट फार्मों में मछलियों को सामान्य दाना दिया जाता है, जिसमें प्रोटीन की मात्रा कम होती है, जबकि कैडिसफ्लाई में प्रोटीन भरपूर होता है।