हिमाचल प्रदेश में वन भूमि पर अतिक्रमण करके लगाए सेब के पेड़ों को काटने के मामले में सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी।
हिमाचल सरकार ने फलों से लदे सेब के पेड़ों को काटने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी शुरू कर दी है। पेड़ कटान से पर्यावरण को होने वाले नुकसान के तर्क के साथ सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी। राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने अधिकारियों के साथ बैठक कर इसके लिए मसौदा तैयार कर लिया है। प्रदेश सरकार ने महाधिवक्ता और वन विभाग को अगले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के निर्देश दिए हैं।
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में वन भूमि पर अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए हैं। सरकार का तर्क है कि इन निर्देशों का पालन किया जा रहा है, लेकिन अतिक्रमण लोगों ने किया है, इसलिए नाजायज कब्जा करने वालों को बेदखल किया जा रहा है। सरकार सुप्रीम कोर्ट में तर्क रखेगी कि बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई से हिमाचल के नाजुक पहाड़ी पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और पर्यावरण को भी नुकसान होगा। मानसून के मौसम में पेड़ कटने से पहाड़ी ढलानों पर भूस्खलन का खतरा बढ़ जाएगा। हिमाचल पहले ही आपदा का सामना कर रहा है, ऐसे में भारी तबाही मचने का खतरा है। पेड़ों की कटाई से स्थानीय वर्षा पैटर्न और जल स्रोतों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। फलदार पेड़ों को काटना नैतिक रूप से भी सही नहीं है। सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया जाएगा कि सरकार फलों की नीलामी अथवा अन्य विकल्प अपनाएगी।
हिमाचल सरकार सुप्रीम कोर्ट से मानवीय और पर्यावरणीय प्रभावों पर विचार कर उच्च न्यायालय के आदेशों को संशोधित करने का आग्रह करेगी, जिससे कम से कम नुकसान हो। शिमला जिले के कोटखाई के चैथला, कुमारसैन सहित अन्य क्षेत्रों में उच्च न्यायालय के आदेशों पर इन दिनों कार्रवाई चल रही है। कार्रवाई का व्यापक विरोध भी हो रहा है। हिमाचल किसान सभा ने इस मामले को लेकर 29 जुलाई को प्रदेश सचिवालय का घेराव करने का भी एलान कर रखा है।
फलों से लदे पेड़ों के कटान से पर्यावरण को होने वाले नुकसान के तर्क के साथ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जाएगी। बरसात में फलदार पेड़ों के कटान से होने वाले भूमि कटाव के चलते आपदा के खतरे का भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखा जाएगा। महाधिवक्ता और वन विभाग को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने की तैयारी करने के निर्देश दिए गए हैं।