# हिमाचल में विरोध की खिचड़ी को पकने से रोकना भाजपा के लिए चुनौती|

Challenge for BJP to stop the brewing of protest in Himachal

कांग्रेस के बागी और तीन निर्दलीय विधायकों की पार्टी में एंट्री का रास्ता तैयार करने वाली भाजपा को अब कई मोर्चों को एक साथ संभालना होगा। प्रदेश के नए सियासी हलकों में उपचुनाव के बदलते समीकरणों के बीच पार्टी में विरोध की सियासी खिचड़ी को पकने से रोकने की बड़ी चुनौती होगी।  टिकट देने पर एक साथ कई मोर्चे खुलेंगे। बागियों के चेहरे पर जनता में नया विश्वास जगाना होगा तो नाराज अपनों को साधना और ऐन चुनावी बेला पर भितरघात को थामना मुश्किल जरूर होगा। सूत्रों के अनुसार भाजपा हाईकमान ने भविष्य की सियासत से जुड़े सभी किंतु-परंतु का समाधान निकालते हुए बागियों और निर्दलीयों का भगवाकरण करने का रास्ता भले ही तैयार कर लिया है। लेकिन, सभी को टिकट, इस अहम सवाल पर पूरी तरह से पत्ते नहीं खोले जा रहे हैं। 

उपचुनाव से जुड़ीं भविष्य की चुनौतियां इसकी वजह हैं। भाजपा हाईकमान को मालूम हैं कि सभी नौ हलकों में इसकी प्रतिकूल प्रतिक्रिया सामने आएगी। अपनों में नाराजगी बढ़ेगी और भितरघात का खतरा भी बना रहेगा। साफ है कि लाहौल-स्पीति में भाजपा प्रत्याशी रहे तीन बार के विधायक व मंत्री डॉ रामलाल मारकंडा, कुटलैहड़ में पूर्व मंत्री वीरेंद्र कंवर, गगरेट में पूर्व विधायक राजेश ठाकुर व राकेश कालिया, बड्सर में पूर्व विधायक बलदेव ठाकुर व टिकट के दावेदार संजीव शर्मा, सुजानपुर में पूर्व प्रत्याशी कैप्टन रणजीत सिंह, सुजानपुर बीडीसी चेयरमैन व पूर्व जिप अध्यक्ष राकेश शर्मा और धर्मशाला में सांसद किशन कपूर, पूर्व विधायक विशाल नैहरिया व पूर्व प्रत्याशी राकेश चौधरी समेत अन्य कई टिकट के चाहवानों को पार्टी का यह फैसला आसानी से पचेगा नहीं।

उपचुनाव की सबसे बड़ी जंग केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में विधानसभा की छह सीटों बड़सर, हमीरपुर, सुजानपुर, देहरा, कुटलैहड़ और गगरेट में लड़ी जाएगी। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू, उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री इसी क्षेत्र से आते हैं। यह संसदीय क्षेत्र पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल की अच्छी पकड़ वाला माना जाता है। बागियों को लेकर पार्टी हाईकमान के फैसले से सबसे ज्यादा प्रभावित धूमल खेमे के लोग ही हो रहे हैं। वहीं, राजेंद्र राणा और पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल में सियासी कड़वाहट के रिश्ते किसी से छिपे नहीं हैं। ऐसे में दोनों के रिश्तों में नई मिठास भी पार्टी को घोलनी होगी। इन तमाम बातों को ध्यान में रखकर टिकट पर बात करने के बजाय बागियों व निर्दलीयों को पहले भगवा चोले के साथ उनके हलकों में भेजकर सक्रिय करना पार्टी की प्राथमिकता दिख रही है।

बागी विधायकों की ज्वाइनिंग से भाजपा का परिवार बढ़ेगा। उम्मीद ही नहीं विश्वास भी है कि पार्टी उपचुनाव में मुझे टिकट देगी। चुनाव लड़ूंगा जरूर। टिकट न मिला तो कांग्रेस में जाने के बजाय आजाद उम्मीदवार चुनाव लड़ने का विकल्प खुला रखा है। -डाॅ. रामलाल मारकंडा, पूर्व मंत्री

भाजपा हाईकमान जो भी फैसला लेगी पार्टी हित में होगा। पार्टी के समर्पित होकर कार्य किया है। उपचुनाव अभी दूर है इसलिए, टिकट पर बात करना अभी सही नहीं है। जब समय आएगा तो कार्यकर्ताओं और पार्टी को विश्वास में लेकर ही कदम उठाया जाएगा।

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