जल्दी खराब होने वाले खाद्य पदार्थों जैसी मैगी, चिप्स, बिस्किट और भोजन को लंबे समय तक तरोताजा रखा जा सकेगा।
खाद्य पैकेजिंग उद्योग के लिए बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग फिल्म वरदान साबित होगी। जल्दी खराब होने वाले खाद्य पदार्थों जैसी मैगी, चिप्स, बिस्किट और भोजन को लंबे समय तक तरोताजा रखा जा सकेगा। इन्हें फ्रेश रखने के लिए लंबे शोध के बाद बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग फिल्म तैयार की गई है। यह जल्दी खराब होने वाले खाद्य सामग्री की पैकेजिंग के लिए प्रयोग की जाएगी।
इस तकनीक के माध्यम से खाने-पीने की चीजों को सड़ने, गलने और खराब होने से बचाया जा सकता है। इससे पर्यावरण संरक्षक को भी बहुत बढ़ावा मिलेगा। यह पैकेजिंग फिल्म उत्कृष्ट श्वसन क्षमता प्रदान करती है, जो ऑक्सीजन को गुजरने देती है और भोजन को बिना किसी दुष्प्रभाव के लंबे समय तक ताजा रखती है। पैकेजिंग फिल्म में लचीलापन और पारभासी उपस्थिति है, जो इसे व्यावसायिकरण के लिए उपयोगी बनाती है।
यह बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग फिल्म पीटीयू, एनआईटी श्रीनगर और डीएवी कॉलेज चंडीगढ़ के प्रोफेसरों की टीम ने तैयार की है। भारत सरकार ने इस शोध पर 20 साल के लिए पेटेंट प्रदान किया है। इस टीम में धर्मपुर से डॉ. क्षमा शर्मा और उनके पति डॉ. विजय कुमार और उनकी टीम शामिल है। पिछले चार सालों से लेकर शोध किया जा रहा था। अब इसमें सफलता प्राप्त हुई है।
नीम के तनों की गोंद से तैयार की फिल्म
डॉ. क्षमा शर्मा डीएवी कॉलेज चंडीगढ़ में अस्सिटेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। डॉ. विजय कुमार राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) श्रीनगर में अस्सिटेंट प्रोफेसर हैं। उन्होंने बताया कि नीम के तनों की गोंद से प्लास्टिक जैसी दिखने वाली फिल्म तैयार की है। इसमें एगरोज, नीम गोंद, हाइड्रॉक्सीपैटाइट और पॉलीसोर्बेट 80 आदि तत्व शामिल हैं।
ये हैं खूबियां
डॉ. क्षमा ने कहा कि यह पैकेजिंग फिल्म प्लास्टिक और एल्यूमीनियम पैकेजिंग की तरह पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालती हैं। हमारी टीम ने पैकेजिंग फिल्म के संश्लेषण के लिए हरित विधियों और हरित सामग्री का उपयोग किया है। पैकेजिंग में इसके लचीलेपन, दीर्घायु, प्लास्टिसिटी और मनुष्यों के लिए उपयोगी होने के कारण यह बेहद अहम है। इसके विपरीत दूसरी प्लास्टिक पैकेजिंग मनुष्यों, जानवरों और पौधों के लिए बहुत हानिकारक साबित हुई है।