# देवभूमि हिमाचल में न झाड़ू चल पाया और न हाथी, जानें किस चुनाव में क्या हुआ|

Lok Sabha Election: Neither broom nor elephant could move in Devbhoomi Himachal, know what happened when

हिमाचल की राजनीति में तीसरा मोर्चा अपना स्थान कभी नहीं बना पाया। लोकसभा चुनाव में अक्सर भाजपा और कांग्रेस पार्टी के बीच ही मुकाबला होता रहा। 

हिमाचल में लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के अलावा कोई भी तीसरा दल अपना दम नहीं दिखा पाया। हालांकि, हिमाचल विकास कांग्रेस (हिविकां) ने एक बार जरूर एक सीट जीती थी, लेकिन इसका कारण भी भाजपा के साथ गठबंधन रहा। बाकी दल सभी चुनावों में तीन फीसदी मत लेने की स्थिति में भी नहीं रहे। माकपा, बसपा, आप समेत कई पार्टियों ने प्रदेश में जड़ें जमाने के प्रयास किए, लेकिन पार्टियां खाता भी नहीं खोल सकीं। इस बार भी माकपा और आम आदमी पार्टी उम्मीदवार देने की तैयारी में है। 

हिमाचल की राजनीति में तीसरा मोर्चा अपना स्थान कभी नहीं बना पाया। लोकसभा चुनाव में अक्सर भाजपा और कांग्रेस पार्टी के बीच ही मुकाबला होता रहा। तीसरे मोर्चे के रूप में अपने आप को स्थापित करने उतरे बाकी दलों के प्रत्याशी चुनावों में तीन फीसदी से ज्यादा मत हासिल नहीं कर पाए। सबसे अधिक मत प्रतिशतता आप प्रत्याशी डॉ. राजन सुशांत की तीन फीसदी ही रही, जबकि वे कांगड़ा से भाजपा से सांसद निर्वाचित हुए थे। 

1980 से पहले भाजपा नहीं थी तो जनता पार्टी से जरूर सांसद बने। 1999 में हिमाचल विकास कांग्रेस यानी हिविकां ने भाजपा के सहयोग से शिमला में धनीराम शांडिल को उम्मीदवार बनाया था और वह जीत हासिल करने में कामयाब रहे। भाजपा और कांग्रेस से इतर किसी पार्टी से सांसद बनने वाले वह पहले नेता थे। 1980 के बाद से कांग्रेस और भाजपा में ही स्पर्धा लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी से वर्ष 1977 में गंगा सिंह मंडी संसदीय क्षेत्र, बालक राम कश्यप शिमला, ठाकुर रणजीत सिंह हमीरपुर ससंदीय और कंवर दुर्गा चंद कांगड़ा संसदीय सीट से सांसद बने थे।

कांग्रेस तो शुरू से ही सक्रिय थी। 1980 में जनता पार्टी के बाद भाजपा अस्तित्व में आई तो तबसे से दोनों दलों में ही स्पर्धा है। हिमाचल प्रदेश में माकपा, आम आदमी पार्टी, बसपा, सपा, पीआरआईएसएम, आरडब्ल्यूएस, एसएचएस, एआईआईसीटी, दूरदर्शी पार्टी, जेपीएस, एलआरपी, आईएनसीओ, सोशलिस्ट पार्टी, केएमपीपी, एबीजेएस, लोजपा जैसे दल चुनाव में प्रत्याशी देते आए हैं, लेकिन उनके हाथ निराशा ही लगी।

मंडी संसदीय सीट

  • 1977 में गंगा सिंह जनता पार्टी से सांसद बने।
  • 2019 में दलीप सिंह खड़े हुए तो उन्हें 14,838 वोट पड़े।
  •   2019 में बसपा से सीसराम ने चुनाव लड़ा, उन्हें 9,060 मत पड़े।
  •   2014 में मंडी से माकपा से कुशाल भारद्वाज को 13,965 मत पड़े, आप के जयचंद ठाकुर को 9,359 और बसपा के लाला राम को 21,780 मत पड़े।
  •  2009 में मंडी से डॉ. ओंकार शाद ने माकपा से चुनाव लड़ा। 20,664 वोट पड़े।
  •  1991 में जनता दल से कर्म सिंह खड़े हुए तो उन्हें 18,112 मत पड़े।

शिमला संसदीय सीट

  • 1977 में बालक राम कश्यप जनता पार्टी से सांसद बने
  • 1999 में धनीराम शांडिल हिविकां से चुने गए
  • 2014 में आप के उम्मीदवार सुभाष चंद्र को 14,233 मत और माकपा के जगतराम को 11,434 मत पड़े।
  • 2009 में बसपा के सोमनाथ ने लिए 8,160 वोट पड़े
  •   2004 में बसपा से 1,14,471 मत पड़े।

कांगड़ा संसदीय सीट
1977 में कंवर दुर्गा चंद जनता पार्टी से सांसद बने।
2019 में बसपा के डॉ. केहर सिंह को 8,866 मत पड़े।
2014 में आप के राजन सुशांत को 24,430 मत पड़े।
2009 में बसपा से नरेंद्र सिंह पठानिया को 12,745 वोट पड़े।
2004 में बसपा के शक्ति चंद चौधरी को 10,860 मत पड़े और सपा के रोशन चंद राणा को 7,092।

  • 1977 में ठाकुर रणजीत सिंह जनता पार्टी से सांसद बने।
  • 2014 में यहां पर आप प्रत्याशी कमलकांत बत्रा को 15,329 मत पड़े।
  • 2009 में बसपा के मंगत राम शर्मा को 11,774 वोट पड़े।

सात को होगा फैसला 
सात अप्रैल को माकपा की बैठक बुलाई गई है। इसमें पार्टी तय करेगी कि चारों संसदीय क्षेत्रों से किस-किस को प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतारना है।-ओंकार शाद राज्य सचिव माकपा, हिमाचल

प्रत्याशी पर मंथन होगा
पार्टी में लोकसभा में प्रत्याशी उतारने को लेकर अभी मंथन होना है। हाईकमान से मामले में अभी विचार विमर्श होगा। कोशिश रहेगी कि पार्टी चारों संसदीय सीटों पर चुनाव लड़े।

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