ग्रामीणों की आय का जरिया बनने वाली जंगली गुच्छी में काली गुच्छी के दाम छह हजार और सफेद गुच्छी के दाम पांच हजार पहुंच गए हैं। जबकि बीते साल 15 से लेकर 20 हजार रुपये प्रति किलो तक ग्रामीणों को दाम मिले थे।
चीन से आयात होने वाली गुच्छी के चलते जंगली गुच्छी के दाम गिर गए हैं। पॉलीहाउस में गुच्छी तैयार होने से भी जंगली गुच्छी के दामों में असर पड़ने लगा है। इससे ग्रामीणों को बड़ा झटका लगा है।
ग्रामीणों की आय का जरिया बनने वाली जंगली गुच्छी में काली गुच्छी के दाम छह हजार और सफेद गुच्छी के दाम पांच हजार पहुंच गए हैं। जबकि बीते साल 15 से लेकर 20 हजार रुपये प्रति किलो तक ग्रामीणों को दाम मिले थे।
नाचन और सिराज घाटी में गुच्छी स्थानीय लोगों के लिए आय का अतिरिक्त जरिया है। सुबह होते ही महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे जंगलों की तरफ कूच कर देते हैं और शाम को गुच्छी एकत्र कर चोखी कमाई करते हैं। इस बार दाम गिरने से ग्रामीणों में मायूसी है। क्षेत्र के जंगल आजकल गुच्छी की फसल से महक उठे हैं। औषधीय गुणों से भरपूर जंगली गुच्छी के दाम में गिरावट का असर ग्रामीणों की आर्थिकी पर पड़ सकता है।
नाचन और सिराज में गुच्छी एकत्र करने की परंपरा कई दशकों से चली आ रही है। गुच्छी की सब्जी बेहद स्वादिष्ट होती है और हिमाचल में स्टेट गेस्ट जब भी आते हैं तो उन्हें गुच्छी की सब्जी परोसी जाती है। स्थानीय निवासी दिनेश कुमार, संजय, नरेंद्र, उमेश और महेंद्र सिंह ने बताया कि गुच्छी से वे अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं। दिल्ली, पंजाब, चंडीगढ़ समेत अन्य राज्यों के लोग हिमाचल से गुच्छी ले जाते हैं और इसकी सब्जी शौक से खाते हैं। जंगली गुच्छी के दाम गिरने से ग्रामीण बेहद चिंतित हैं। गुच्छी के व्यापारी खीमा राम ने दाम गिरने की पुष्टि की है।
कुथाह मेला गुच्छी खरीद-फरोख्त के लिए मशहूर
जंजैहली घाटी का ऐतिहासिक कुथाह मेला गुच्छियों की खरीद-फरोख्त के लिए मशहूर है। मेले में ग्रामीण गुच्छियां एकत्र करके लाते हैं और यहां कई राज्यों से व्यापारी गुच्छियां लेने आते हैं। कुथाह मेले में गुच्छियों का लाखों का व्यापार होता है।