निर्दलियों को मनाने में जुटीं पार्टियां, नाम वापस लेने के लिए लगा रहीं जोर

lok sabha election: Parties trying to convince independents, trying to withdraw their names in himachal

लोकसभा की चार और विधानसभा की छह सीटों पर हो रहे उपचुनाव में निर्दलीय के तौर पर उतरे प्रत्याशियों को बैठाने के लिए जोर आजमाइश शुरू हो गई है। 

हिमाचल में लोकसभा की चार और विधानसभा की छह सीटों पर हो रहे उपचुनाव में निर्दलीय के तौर पर उतरे प्रत्याशियों को बैठाने के लिए जोर आजमाइश शुरू हो गई है। दोनों चुनाव में 40 से ज्यादा निर्दलीय उम्मीदवार मैदान हैं। भाजपा और कांग्रेस के नेता निर्दलियों को नामांकन वापस लेने के लिए मना रहे हैं। अब ये नेता निर्दलीय उम्मीदवारों को बैठाने में कितने सफल रहते हैं, इसका फैसला 17 मई को होना है। इस दिन नामांकन की वापसी है।

अगर निर्दलीय अपना नामांकन वापस नहीं लेेते हैं तो ऐसी स्थिति में हिमाचल में विधानसभा उपचुनाव के साथ-साथ लोकसभा चुनाव के समीकरण पर भी असर देखने को मिलेगा। इनके मैदान में डटे रहने से चुनावी समीकरण बिगड़ सकते हैं। लाहौल स्पीति से विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने कांग्रेस के बागी विधायक रवि ठाकुर को प्रत्याशी बनाया है, ऐसे में यहां पर पूर्व भाजपा प्रत्याशी और जयराम सरकार में मंत्री रहे रामलाल मारकंडा पार्टी से नाराज चल रहे हैं। वह निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं।

भाजपा को लग रहा है कि मारकंडा के चुनाव लड़ने से पार्टी को नुकसान हो सकता है, ऐसे में उन्हें नामांकन वापस लेने के लिए पार्टी नेताओं ने मनाना शुरू कर दिया है। भाजपा से टिकट न मिलने के बाद मारकंडा ने कांग्रेस पार्टी से भी टिकट की मांग की थी, लेकिन कांग्रेस ने भी इन्हें टिकट नहीं दिया और संगठन कार्यकर्ता अनुराधा राणा को प्रत्याशी बनाया है।

 धर्मशाला में भी यही स्थिति बनी हुई है। यहां भी भाजपा ने कांग्रेस पार्टी के बागी विधायक सुधीर शर्मा को प्रत्याशी बनाया है। पूर्व में भाजपा के प्रत्याशी रहे राकेश चौधरी ने भी कांग्रेस पार्टी से टिकट मांग की, लेकिन पार्टी ने उन्हें गले न लगाकर संगठन के पदाधिकारी देवेंद्र जग्गी को प्रत्याशी बनाया तो चौधरी भी निर्दलीय मैदान में उतर गए। मारकंडा और चौधरी की जनता में अच्छी पैठ है, ऐसे में ये दोनों पार्टी को नुकसान पहुंचा सकते हैं, ऐसा भाजपा को लग रहा है।

ये निर्दलीय उम्मीदवार भी हैं अभी चुनाव मैदान में 
मंडी संसदीय क्षेत्र से सुभाष स्नेही निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं। बताया जा रहा है कि इनके चुनाव मैदान में डटे रहने से भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशियों के वोट की काट होने की संभावना जताई जा रही है। स्नेही का यह बतौर निर्दलीय पांचवां चुनाव है। पेशे से वह हाईकोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। यह कुल्लू जिला के निरमंड गांव के रहने वाले हैं। कुल्लू जिले में इनकी अच्छी पैठ बताई जा रही है। बड़सर उपचुनाव की बात करें तो यहां युवा कांग्रेस के एक पदाधिकारी विशाल शर्मा भी निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं।

कांग्रेस विशाल शर्मा को मनाने का प्रयास कर रही है। हालांकि, नामांकन वापसी पर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं हुई है। यहां कांग्रेस पार्टी के भाजपा के प्रत्याशी इंद्रदत्त लखनपाल और कांग्रेस पार्टी ने सुभाष को प्रत्याशी बनाया है। शिमला संसदीय क्षेत्र से बसपा प्रत्याशी अनिल कुमार मंगेट चुनाव मैदान में हैं। वह मायावती के सोशल इंजीनियरिंग फाॅर्मूला के आधार अनुसूचित जाति के वोटों पर उम्मीद लगाए हुए हैं। हालांकि, बसपा पहले भी शिमला सीट पर उम्मीदवार दे चुकी है, मगर इसका अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा है। 

क्या बोले बागी  
धर्मशाला विधानसभा उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी राकेश चौधरी ने बताया कि प्रयास सभी करते हैं लेकिन मैं मैदान में डटा रहूंगा। नामांकन किसी भी सूरत में वापस नहीं होगा। लोकसभा चुनाव में भी निर्दलीय चुनाव मैदान में है। इनकी संख्या 50 के करीब है। वहीं, लाहौल स्पीति से निर्दलीय प्रत्याशी मारकंडा ने बताया कि उन्होंने सोच समझकर ही चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। वह पीछे नहीं हटेंगे।

चुनाव लड़ रहे नेताओं पर अब ईडी की नजर
 हिमाचल में लोकसभा चुनाव और विधानसभा उपचुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) नजरें बनाए हुए हैं। चुनाव मैदान में उतरें प्रत्याशियों ने अपनी संपत्तियां सार्वजनिक की हैं। बाकायदा इसको लेकर निर्वाचन अधिकारियों को शपथ पत्र दिए हैं। करोड़ों की संपत्तियों के ये मालिक ईडी की रडार पर हैं। इस वक्त लोकसभा चुनाव और विधानसभा उपचुनाव में 84 प्रत्याशियों ने नामांकन दायर किए हैं। इसमें कई प्रत्याशी के पास करोड़ों रुपये की संपत्ति है।

लोकसभा चुनाव और विधानसभा उपचुनाव में 84 प्रत्याशियों ने नामांकन दायर किए हैं। चुनाव में प्रत्याशियों को अपनी संपत्ति सार्वजनिक करनी होती है। देखने में आया है कि कई प्रत्याशी अपनी संपत्तियां छुपाते हैं। संपत्ति ज्यादा होती है लेकिन शपथ पत्र में कम दिखाई जाती है। आय से अधिक संपत्ति की आंशका के चलते प्रवर्तन निदेशालय अपने स्तर पर इसकी जांच पड़ताल करता है।

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