करीब आठ वर्षों के बाद गुरुवार को नारायण स्वामी का भी लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। आज ये दोनों इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन एक संदेश छोड़ गए हैं, जो आज के राजनेताओं के लिए सीख है।
हिमाचल प्रदेश के घुमारवीं विधानसभा सीट से दो बार विधायक रह चुके नारायण सिंह स्वामी अपनी मौत के साथ कुछ ऐसी यादें छोड़ गए हैं, जो इस कड़वाहट भरे चुनावी माहौल में मौजूदा दौर के नेताओं को राजनीति के एक नए आयाम के साथ रूबरू कराएंगी। जीवनभर अपने आदर्शों पर कायम रहे नारायण राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के तौर पर कांग्रेस के पं. सीता राम शर्मा की जीवन पर्यंत खिलाफत करते रहे। सीता राम भी आदर्शों के पक्के ईमानदार राजनेता थे। वह वर्ष 1972 से 1977 तक कांग्रेस के विधायक व संसदीय सचिव रहे। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में 1977 व 1980 का चुनाव जनता पार्टी के उम्मीदवार नारायण सिंह के विरुद्ध लड़ा। सियासी मैदान में दोनों धुर विरोधी थे।
अलग राजनैतिक विचारधाराएं रखने के बावजूद दोनों ने एक-दूसरे पर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप तो लगाए पर व्यक्तिगत मर्यादाओं को कभी नहीं लांघा। 1972 से 1977 के दौरान भी नारायण कई बार उनके मेट्रोपोल के 203 नंबर सेट में रुके। एक बार चुनाव के दौरान स्वामी कांग्रेस प्रत्याशी सीता राम के गांव भराड़ी में प्रचार कर रहे थे। शाम होने पर स्वामी लौटने की सोच ही रहे थे कि अचानक सामने सीता राम टकरा गए। प्रतिद्वंद्वी होने के बावजूद दोनों गर्मजोशी से मिले और इसी बीच सीता राम ने उन्हें अपने घर खाना खाने का न्योता दे दिया। स्वामी ने न केवल निमंत्रण को स्वीकार किया, बल्कि रात को उनके घर में ही रुक गए। सुबह दोनों फिर एक-दूसरे के खिलाफ प्रचार पर निकल गए।
उसके बाद स्वामी अकसर सीता राम से मिलने आया करते थे। 1972 से 1977 के दौरान शिमला के मेट्रोपोल में दोनों लंबी राजनीतिक बहस किया करते थे। स्वामी पंडित सीता राम के बड़े भाई डॉ. बंशी राम शर्मा के भी घनिष्ठ मित्र रहे। दोनों की अध्यात्म में गहरी रुचि थी। जब भी मिलते, अध्यात्म पर चर्चा करते।
एक ही अस्पताल, बेड भी आमने-सामने
यह भी संयोग ही है कि मई 2016 में तबीयत खराब होने पर दोनों शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल पहुंच गए। दोनों को कार्डियक केयर यूनिट में एक-दूसरे के सामने के बेड मिले। विडंबना देखिए दोनों बेहोश थे और हालत ऐसी थी कि आपस में बात नहीं कर सकते थे। जुलाई 2016 में पंडित सीता राम का देहांत हो गया और करीब आठ वर्षों के बाद पिछले कल नारायण स्वामी का भी लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। आज ये दोनों इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन एक संदेश छोड़ गए हैं, जो आज के राजनेताओं के लिए सीख है।