किसी के पास जिला परिषद का रसूख है तो किसी को महिला और युवा फैक्टर का सहारा है। कोई मोदी के सहारे चुनाव लड़ रहा है तो कोई सीएम सुखविंद्र सिंह सुक्खू से नजदीकी का लाभ उठाना चाह रहा है।
हिमाचल लोकसभा चुनाव और विधानसभा उपचुनावों के लिए नए चेहरे अलग तरह के समीकरणों के बूते चुनावी नैया पार लगवाना चाह रहे हैं। किसी के पास जिला परिषद का रसूख है तो किसी को महिला और युवा फैक्टर का सहारा है। कोई मोदी के सहारे चुनाव लड़ रहा है तो कोई सीएम सुखविंद्र सिंह सुक्खू से नजदीकी का लाभ उठाना चाह रहा है। उपचुनाव की बात करें तो बड़सर से सुभाष चंद कांग्रेस का नया चेहरा हैं जो उपचुनाव में भाजपा के इंद्रदत्त लखनपाल से मुकाबिल होंगे। वह पूर्व में जिला परिषद और पंचायत समिति के सदस्य भी रह चुके हैं। सीएम सुक्खू ने उन पर भरोसा जताया है। वह ऐसे समीकरणों के सहारे अपनी कश्ती पार लगाना चाहते हैं। कुटलैहड़ से विवेक शर्मा भी पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं।
वह लंबे समय से संगठन में सक्रिय हैं और सीएम सुक्खू के भी करीबी हैं। लाहौल स्पीति से कांग्रेस प्रत्याशी अनुराधा राणा भी एकदम नया नाम सामने आया है। उन्हें महिला फैक्टर का भरोसा है। लाहौल स्पीति में मतदान के लिए महिलाओं की भागीदारी अधिक रहती है। लाहौल स्पीति रवि ठाकुर और रामलाल मारकंडा की परंपरागत विधायकी वाली सीट रही है, यहां से अनुराधा के खिलाफ बोलने के लिए कोई खास मुद्दा नहीं है। सुक्खू ने ऐसे तमाम फैक्टरों से ही अनुराधा पर भरोसा किया है। धर्मशाला से कांग्रेस के देवेंद्र जग्गी भी नए प्रत्याशी हैं। वह राजपूत हैं, यहां से भाजपा के प्रत्याशी सुधीर शर्मा ब्राह्मण हैं तो निर्दलीय खड़े राकेश चौधरी ओबीसी से संबंध रखते हैं।
नगर निगम के पूर्व मेयर रह चुके जग्गी को राजपूत मतों के अलावा गद्दी वोटरों पर भी भरोसा है। गद्दी समुदाय का एक तबका यहां से सांसद किशन कपूर का टिकट कटने से नाराज है। कुछ राजनेता इसका प्रभाव लोकसभा सीट पर ही नहीं, बल्कि उपचुनाव में भी देख रहे हैं। लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने कांगड़ा से भी राजीव भारद्वाज के रूप में नया उम्मीदवार दिया है। भारद्वाज पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार के रिश्तेदार हैं तो वह इस रसूख का भी लाभ उठाना चाह रहे हैं। वह जातीय समीकरण का भी लाभ उठाना चाह रहे हैं।
कहीं पुराने चेहरे तो कहीं बड़े नाम भी
कांग्रेस ने शिमला लोकसभा सीट पर बेशक विधायक विनोद सुल्तानपुरी को भी पहली बार प्रत्याशी बनाया है, पर वह कसौली से विधायक हैं। उन्हें अपने पिता की राजनीतिक विरासत और शिमला संसदीय सीट से विधायकों के संख्याबल से उम्मीद है। उनके पिता केडी सुल्तानपुरी यहां से छह बार सांसद रह चुके हैं। मंडी संसदीय सीट से विक्रमादित्य सिंह भी लोकसभा चुनाव के पहली बार प्रत्याशी बनाए गए हैं। वह भी वर्तमान सरकार में मंत्री हैं। उनके पास भी राजनीति विरासत का एक बड़ा सहारा है। हमीरपुर से पूर्व विधायक सतपाल रायजादा कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे हैं। वह भी सुक्खू के नजदीकी हैं। कांगड़ा से आनंद शर्मा भी बेशक पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं, मगर वह एक जाना-पहचाना नाम हैं।
रणौत को मोदी नाम पर भरोसा
मंडी से कंगना रणौत भी नया चेहरा हैं। सिने तारिका की एक ताकत बोल्डनेस भी मानी जा रही है तो वह महिलाओं को भी रिझाने का प्रयास कर रही हैं। कंगना को मोदी नाम का सहारा है। वह तो मोदी की तुलना भगवान राम से कर खुद को गिलहरी कह चुकी है। वह उसी तरह से हिंदुत्व कार्ड खेलना चाह रही हैं, जैसा कि रामस्वरूप शर्मा भी खेल चुके हैं। मंडी में भाजपा विधायकों की अधिक संख्या होने, पूर्व सीएम जयराम के प्रभाव का भी इस्तेमाल कर रही हैं।