1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटबारे ने ऐसा दर्द दिया, जिसको उस समय के पीड़ित परिवार ताउम्र नहीं भूल पाए हैं। बंटवारा सिर्फ देश का नहीं हुआ था बल्कि आपसी रिश्तों, भावनाओं और दिल के रिश्तों का भी हो गया था। बंटवारे का दंश झेलने वाले दोनों मुल्कों के लोगों को रातोंरात देश छोड़कर जाना पड़ा था। आज भी उन दर्द विदारक पलों को लोग याद करते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो पाकिस्तान में जाने के बाद भी भाईचारे और सौहार्द की मीठी यादों को आज भी नहीं भूले हैं।
बता दें कि इन दिनों एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। इसमें 1947 इंडस डायरिज कार्यक्रम में करीब सौ वर्ष के बुजुर्ग मुस्लिम बाबा आप आपबीती सुना रहे हैं। खुद को हिमाचल प्रदेश के पांवटा साहिब के रामपुरघाट निवासी बता रहे हैं। बाबा का कहना है कि सिरमौर रियासत में बेहद बेहतर (चंगा) राजा था। उस समय फरमान जारी हुआ था कि अब ये रियासत नहीं रहेगी, इसलिए अपने सामान के साथ जो जाना चाहते हैं, शांतिपूर्वक जा सकते हैं। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद पांवटा से नाहन, अंबाला होकर पाकिस्तान के मियांवाली तक पहुंचने की पूरी दास्तां वीडियो में बता रहे हैं। बताया कि रामपुरघाट से एक मील पैदल चलकर पांवटा स्कूल पढ़ने पहुंचते थे।
पांवटा में उस समय के अपने दोस्तों के नाम याद हैं जिसमें प्रेम चंद, देव चंद और गुरु चंद शामिल हैं। गन्ना व धान-चावल प्रचूर मात्रा में होता था। रामपुर गांव में पक्की मस्जिद कुआं होता था। अमन पसंद पांवटा क्षेत्र में हिंदू, मुस्लिम और सिख भाईचारे के साथ रहते थे। होला मोहल्ला मेला तक याद है। धौलाकुआं निवासी नंबरदार मंजूर अली मलिक, अश्वनी शर्मा, सुनील चौधरी,सुभाष शर्मा, पीपलीवाला के पूर्व प्रधान जुल्फकार अली और भरत ठाकुर का कहना है कि बाबा की वीडियो सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रही है। पांवटा के रामपुरघाट में रहे बाबा की बंटवारे के इतने दशकों बाद भी क्षेत्र के प्रति धारणा काबिले तारीफ है।
नाहन फाउंड्री का कत्था उत्पादन तक याद
बंटवारे के दौरान पाकिस्तान पहुंचे बुजुर्ग बाबा अंत में बताते हैं कि पुरानी यादें नहीं भूल पाए हैं। सिरमौर रियासत में मशहूर नाहन फाउंडरी कारखाना था। बाबा ने बताया कि खेर के पेड़ थे जिनको कारखाने में भेजकर पान में इस्तेमाल होने वाला कत्था तैयार किया जाता था।