उपचुनाव के नतीजों ने इन्हें चर्चाओं में ला दिया है। चार सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों की हार को इन कहावतों से जोड़ कर कई तरह के सियासी मायने भी तलाशे जा रहे हैं।
आगे कुआं पीछे खाई, जाएं तो जाए कहां, घर के रहे न घाट के… आम बोल-चाल में अकसर इस्तेमाल होने वाली ये कहावतें इन दिनों हिमाचल में थम चुके चुनावी रण पर भी सटीक बैठ रही हैं। उपचुनाव के नतीजों ने इन्हें चर्चाओं में ला दिया है। चार सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों की हार को इन कहावतों से जोड़ कर कई तरह के सियासी मायने भी तलाशे जा रहे हैं। अगले चुनाव तक सब भविष्य के गर्त में है, लेकिन सियासी गलियारों में जितने मुंह उतनी बातें चल पड़ी हैं। दरअसल, प्रदेश में लोकसभा चुनाव के साथ छह विस सीटों पर हुए उपचुनाव भाजपा और पार्टी के चार प्रत्याशियों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं रहे।
उपचुनाव के नतीजों ने सुजानपुर से राजेंद्र राणा, लाहौल से रवि ठाकुर, गगरेट से चैतन्य शर्मा और कुटलैहड़ से देवेंद्र भुट्टो को विकट स्थिति में डाला है। 2022 में जीत दर्ज कर राजेंद्र राणा, रवि ठाकुर ने कांग्रेस में रह अपना कद बढ़ाया था। भुट्टो और चैतन्य पहली बार विधानसभा पहुंचे। राज्यसभा चुनाव के साथ प्रदेश की सियासत ने करवट ली तो चारों के रास्ते भी अलग हो गए और प्रदेश की सियासत के समीकरण में भी बदल गए।
विधानसभा की सदस्यता गंवाकर चारों ने भाजपा का साथ देने की कीमत चुकाई। लंबे सियासी ड्रामे, असमंजस के बीच बागियों ने भगवा चोला ओढ़ डाला। उपचुनाव की घोषणा हुई तो भाजपा ने इन्हें प्रत्याशी घोषित किया। बागियों को जीत हासिल करने की उम्मीद भी थी और खुद पर भरोसा भी। लेकिन, नतीजे उलट गए। सुधीर शर्मा और इंद्रदत्त लखनपाल ही अग्निपरीक्षा में पास हो पाए। जबकि, हार ने राजेंद्र राणा, रवि ठाकुर, देवेंद्र भुट्टो और चैतन्य शर्मा को न सिर्फ निराशा में डाला, आगे के लिए चुनौतियों का पहाड़ भी खड़ा कर दिया है।
अगले विस चुनाव में अभी करीब साढ़े तीन साल का समय है और इस पूरी अवधि में चारों को कांटों भरी सियासी डगर पर चलना होगा। प्रदेश की राजनीति में बने रहने के लिए अगला चुनाव जीतने की मजबूरी तो होगी ही लेकिन इससे पहले क्या होगा, कैसे होगा, सबकुछ भविष्य के गर्त में है। भाजपा में मान-सम्मान और फिर से टिकट पर किंतु-परंतु की सियासी दुश्वारियां बनी रहेंगी। भितरघात का नए सिरे से मुकाबला करना पड़ेगा।
साफ है कि अगली बार जीत का परचम लहराकर दांव पर लगे सियासी कॅरिअर को संभालना चारों के लिए चुनौतियों का पहाड़ चढ़ने से कम नहीं होगा। उधर, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजीव बिंदल ने कहा कि मोदी के नेतृत्व केंद्र सरकार का गठन हो जाने के बाद प्रदेश के मसलों पर चर्चा करेंगे। उपचुनाव में चार सीटों पर भी निश्चित तौर पर चिंतन करेंगे। हार के कारणों का भी पता लगाया जाएगा। उप चुनाव हारने वाले पार्टी के प्रत्याशियों को लेकर तरह तरह की बातें मीडिया में ही उठ रही है। अभी तक पार्टी स्तर पर इस विषय में अभी कोई चर्चा नहीं हुई है
निराशा की कोई बात नहीं। जीत-हार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जनता का फैसला स्वीकार है। विपरीत परिस्थितियों में चुनाव लड़ा गया, फिर भी भरोसा कायम रखने के लिए 27 हजार मतदाताओं का आभार। सुजानपुर के लोगों से भावनात्मक रूप से जुड़ा हूं। आगे जैसी भी परिस्थितियां बनेंगी डटकर मुकाबला किया जाएगा। -राजेंद्र राणा
प्रदेश-राष्ट्रीय नेतृत्व का पूरा सहयोग मिला। भितरघात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। पार्टी का वोट डॉ. मारकंडा को भी शिफ्ट हुआ। संगठन के साथ हूं, आगे भी रहूंगा। संगठन की मजबूती के लिए डटकर काम करेंगे। जनता की सेवा में कमी नहीं छोड़ेंगे। संगठन के दिशा-निर्देश पर आगे बढ़ेंगे। -रवि ठाकुर
सामान्य कार्यकर्ता के तौर पर भाजपा में आया हूं। भाजपा की नीतियों और केंद्र में मोदी सरकार के काम से प्रभावित होकर ही पार्टी बदली। आगे भी एक कार्यकर्ता की तरह पार्टी के लिए और क्षेत्र के जनता के लिए समर्पित भाव से काम करता रहूंगा। अगले चुनाव में टिकट देना या न देना, यह संगठन का काम है। -देवेंद्र भुट्टो