डैम, पावर हाउस में सैटेलाइट फोन से रहेगा संपर्क, बीबीएमबी प्रबंधन ने लिया बड़ा फैसला

बीते वर्ष बरसात के दौरान हुई आपदा से बीबीएमबी प्रबंधन ने बड़ा सबक लिया है। इस बार अब बरसात में डैम और पावर हाउस समेत मुख्य जगहों पर सैटेलाइट फोन से आपस में संपर्क रहेगा। ताकि किसी भी तरह की स्थिति पर तुरंत संपर्क किया जा सके। मोबाइल नेटवर्क और लैंडलाइन सेवा ठप होने की सूरत पर यह सैटेलाइट फोन अहम भूमिका निभाएंगे। भारी बरसात के दौरान पंडोह डैम लबालब भरता है। यहीं से ब्यास में पानी छोड़ा जाता है। लारजी बांध से पानी छोड़ने पर पंडोह डैम से पानी छोड़ा जाता है। बरसात के दौरान पंडोह डैम के जल स्तर पर अधिकारियों की निगरानी रहती है।

पंडोह डैम से ही बग्गी को भी टनल से होकर पानी भेजा जाता है। इसी टनल का पानी बग्गी में निकलकर बीएसएल जलाशय तक पहुंचता है। इसके बाद यह डैहर पावर हाउस तक पहुंचता है। ऐसे में पंडोह डैम, बग्गी और डैहर पावर हाउस तीनों ही प्रमुख स्थल हैं, जहां बीबीएमबी की निगरानी रहना बेहद जरूरी रहता है। बीते वर्ष बरसात में आपदा के दौरान पंडोह में कनेक्टिविटी पूरी तरह से ध्वस्त हो गई थी। सात से दस दिन के भीतर फोन मिलने की उम्मीद है। बीबीएमबी सुंदरनगर के अधीक्षण अभियंता अजय पाल ने बताया कि फोन जल्द उपलब्ध होंगे। 

आधुनिक अर्ली वार्निंग सिस्टम से आपदा के खतरे को भांपेगा शानन प्रोजेक्ट
चौहारघाटी में अब अर्ली वार्निंग सिस्टम से बाढ़ के संभावित खतरे को शानन प्रोजेक्ट भांपेगा। इसके लिए बरोट स्थित शानन परियोजना से 20 किलोमीटर दूर बड़ा गांव के गड़सा ब्रिज के समीप आधुनिक अर्ली वार्निंग सिस्टम स्थापित होगा।  वहीं, लंबाडग नदी की भी मॉनिटरिंग के लिए लोहारडी में इसी तकनीक के आधुनिक सेंसर स्थापित होंगे। करीब एक करोड़ से अधिक की धनराशि अर्ली वार्निंग सिस्टम स्थापित करने के लिए खर्च की जाएगी। प्राकृतिक आपदा से किसी भी प्रकार का जानी नुकसान न हो, इसके लिए पहली बार चौहारघाटी में इस आधुनिक तकनीक को अपनाया जा रहा है।

इसके स्थापित होने के बाद किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा के संभावित खतरे पर पहले ही घंटी बजना शुरू हो जाएगी। शानन प्रोजेक्ट की बरोट स्थित उहल परियोजना की पुरानी और नई रेजरवायर में जब अचानक जलस्तर बढ़ जाता है तो बरोट वैली में बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं। शानन प्रोजेक्ट के आरई सतीश कुमार ने बताया कि सिस्टम स्थापित होने के बाद कंट्रोल रूम में जैसे ही खतरे की घंटी बजेगी तभी बड़ागांव से टिक्कन तक हुटर बजना शुरू हो जाएंगे। सैटेलाइट के माध्यम से भी आपदा के संभावित खतरे को भांपने में आसानी मिलेगी।

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