हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष पिछले साल की तुलना में 50 लाख सेब के डिब्बे की मांग बढ़ी है। पहले टेलीस्कोपिक डिब्बे तैयार होते थे, लेकिन इस बार यूनिवर्सल डिब्बे बनाए जा रहे हैं। वहीं, पिछले वर्ष की तुलना में इस बार पांच रुपये डिब्बे के दाम भी सस्ते हुए हैं। प्रदेश में 250 के करीब गत्ता उद्योग हैं। इसमें 100 से अधिक उद्योग सेब के डिब्बे ही तैयार करते हैं। पहले टेलीस्कोपिक डिब्बे बनते थे जिसमें 28 से 30 किलो तक सेब आ जाता था, लेकिन इस बार यूनिवर्सल डिब्बे ही बागवानों को भेजे जा रहे हैं। इस डिब्बे में 20 किलो ही सेब आता है। ऐसे पिछले वर्ष जहां पर ढाई करोड़ सेब के डिब्बे लगे थे वहीं, इस बार यह पचास लाख बढ़ कर तीन करोड़ तक पहुंच गए हैं।
जिन उद्यमियों के पास पुराने टेलीस्कोपिक डिब्बे पड़े हुए थे, उन्होंने यह डिब्बे नाशपाती और आडू आदि के लिए सप्लाई कर दिए हैं। सेब के लिए सभी उत्पादकों ने नए सिरे से डिब्बे तैयार कर अच्छी गुणवत्ता के सप्लाई किए जा रहे हैं। जिसमें एक माह तक सेब खराब नहीं होगा। यही नहीं यूनिवर्सल डिब्बे के दाम भी पांच रुपये कम हैं। जीएसटी कम होने से सेब के डिब्बे के दाम भी कम हुए है और सेब उत्पादकों को 60 रुपये तक डिब्बे पहुंच रहा है। गत्ता उद्योग संघ के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष गिरीश सरदाना ने बताया कि इस बार प्रदेश से तीन करोड़ तक गत्ते के डिब्बे तैयार होगे। कालाअंब, बद्दी, बरोटीवाला और नालागढ़ में गत्ता संचालक सेब के डिब्बे तैयार करते हैं।
गत्ता उद्योग संघ के पूर्व राज्य अध्यक्ष मुकेश जैन, वर्तमान अध्यक्ष आदित्य सूद ने बताया कि पिछले साल की तुलना में इस बार पांच रुपये की सेब के डिब्बे सस्ते हुए हैं। जीएसटी कम होने से रेट में कमी आई है। वहीं अब एक डिब्बे में 20 किलो सेब आने से डिब्बे की संख्या बढ़ गई है। गत्ता संचालकों को काम मिला है वहीं सेब उत्पादकों को भी कम दाम में डिब्बे मिल रहे है। वहीं यूनिवर्सल डिब्बे में सेब खराब होने का खतरा भी कम हो गया है।