हिमाचल प्रदेश में पूर्ण राज्यत्व का दर्जा मिलने से लेकर आज तक कर्मचारी राजनीति हॉट बनी हुई है। कर्मचारी हर सरकार में कोई न कोई मुद्दा लेकर राज्य में अपनी सियासत गरमाते रहे हैं। पंजाब पुनर्गठन अधिनियम 1966 में जब लागू हुआ तो 1 नवंबर 1966 को कांगड़ा और पंजाब के अन्य पहाड़ी इलाकों को हिमाचल प्रदेश में मिला दिया गया। हिमाचल प्रदेश उस वक्त केंद्र शासित प्रदेश था। उस समय भी कर्मचारी राजनीति हिमाचल में खूब पनपी।
पंजाब सरकार के हिमाचल सरकार में विलय किए कर्मचारियों और सामान्य कर्मचारियों के बीच वेतन विसंगति का मुद्दा भी प्रमुखता से उठता रहा। कर्मचारी संगठन ऐसे तमाम मुद्दों पर अस्तित्व में आने लगे। 1971 में जब हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्यत्व का दर्जा मिला तो उस वक्त भी कर्मचारी वेतन विसंगति और अन्य मसले उठाते रहे। 1980 के दशक में पूर्णानंद मधुकर बड़े कर्मचारी नेता के रूप में उभरे। तत्कालीन मुख्यमंत्री रामलाल ठाकुर के कार्यकाल में उन्होंने हिमाचल प्रदेश कर्मचारी महासंघ को मान्यता दिलाने का मुद्दा उठाया। रामलाल ठाकुर के कार्यकाल में ही महासंघ को मान्यता भी मिली। 1986 में वीरभद्र सरकार में कर्मचारियों ने कैपिटल एलाउंस की लड़ाई लड़ी।
कंवर रंजीत सिंह, रंजीत सिंह वर्मा, गोपाल दास वर्मा, गंगा सिंह ठाकुर, चंद्र सिंह मंडयाल, जगदीश चौहान, आरएल मांटा, गोविंद चतरांटा, लक्ष्मी सिंह मच्छान, सुरेंद्र ठाकुर, एसएस जोगटा, सुरिंद्र मनकोटिया आदि कई नेता हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ और अन्य संगठनों में खूब चर्चित रहे हैं। गोपाल दास वर्मा तो राज्य सचिवालय में कर्मचारी महासंघ को कार्यालय दिलाने में कामयाब हुए। 1990-91 में जब शांता कुमार की सरकार के ‘काम नहीं तो वेतन नहीं’ आदेश पर कर्मचारी संगठन भड़के तो उस दौरान गंगा सिंह ठाकुर, चंद्र सिंह मंडयाल जैसे कर्मचारी नेता खूब चर्चा में आए। उस वक्त शांता सरकार ने 19 कर्मचारियों को तो डिसमिस ही कर दिया था। 40 के आसपास कर्मचारी नेता टर्मिनेट किए गए।
अब वर्तमान में जहां हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ मान्यता प्राप्त करने के लिए दो-तीन गुटों में बंटा हुआ है, वहीं हिमाचल प्रदेश सचिवालय सेवाएं कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष संजीव शर्मा ने लंबित महंगाई भत्ते और एरियर के मुद्दे पर कर्मचारियों की राजनीति को गरमा दिया है।
क्या कहते हैं कर्मचारी नेता
कर्मचारी नेता गोविंद चतरांटा का कहना है कि प्रदेश के कर्मचारी अपने अधिकारों को लेकर हमेशा सजग रहे हैं। कर्मचारी राजनीति के रास्ते रंजीत सिंह वर्मा तो बाद में विधायक तक का सफर तय कर गए थे। गोपाल दास वर्मा बताते हैं कि उनके समय में हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ एकजुट हुआ था। उन्होंने कर्मचारी एकता को बढ़ावा दिया।