हिमाचल प्रदेश में कई कारणों से घरेलू कौवों का कुनबा घट गया है। हालात यह है कि शहरी क्षेत्रों में कौवे ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। तेजी से हो रहे विकास कार्य कौवों के आवास से लेकर भोजन में बड़ी बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। इन दिनों पितृपक्ष में कौवाें का अकाल सा पड़ गया है। घरेलू कौवे अर्थव्यवस्था, पारिस्थितिकी और संस्कृति के संबंध में महत्वपूर्ण हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार हिमाचल प्रदेश में कई कारणों से घरेलू कौवों की आबादी में गिरावट आई है। जलवायु पैटर्न में बदलाव और चरम मौसम की घटनाएं कौवों के व्यवहार और अस्तित्व को प्रभावित कर रहे हैं। मोबाइल टावर की इल्ट्रोमैग्नेटिक रेडियेशन से भी पक्षियों की प्रजनन क्षमता को कम कर रहा है। इसका सीधा प्रभाव इनकी संख्या पर पड़ रहा है।
तेजी से शहरी विकास से कौवों के निवास स्थान का नुकसान हो रहा है। इससे कौवों के लिए घोंसले, शिकार स्थलों और भोजन स्रोतों की उपलब्धता कम हो गई है। कचरे के प्रबंधन प्रथाओं में बदलाव और जैविक कचरे में कमी से कौवों के लिए भोजन की आपूर्ति कम हो रही है। इस पर कौवों ने कृषि क्षेत्रों से कीड़े और अनाज खाना शुरू कर दिया है। चूंकि यह नया भोजन कीटनाशकों की मौजूदगी के कारण जहरीला है, इसलिए इसके सेवन से इनकी मौतें हो रही हैं।
कौवों की घटती आबादी के पीछे कई कारण हैं। कौवे छोटे पक्षियों, अंडों और चूजों का शिकार करते हैं, जो कि पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित कर रहे हैं। लोग नियमित रूप से कौवों को खाना नहीं खिला रहे हैं। उन्हें प्लास्टिक की थैलियों में लपेटा हुआ भोजन दे रहे हैं। इस वजह से भी अब कौवे कम होते जा रहे हैं। – डॉ. नीलम ठाकुर, सहायक प्रोफेसर, जूलॉजी विभाग, एसपीयू
भोजन की तलाश और पानी के उचित साधन में दिक्कत, ध्वनि प्रदूषण, जंगल में मानव का हस्तक्षेप कौवों समेत अन्य पक्षियों के जीवन में प्रभाव डाल रहा है। यह इनकी घटती संख्या का कारण है। पहले इन सबकी उपलब्धता अधिक थी, यह धीरे-धीरे कम होती जा रही है। -हर्ष सोनी, सहायक प्रोफेसर, स्कूल ऑफ फिजिकल साइंसेज, आईआईटी मंडी
पितृ दूत कहलाता है कौवा
शास्त्रों में उल्लेख है कि कौवा एक मात्र ऐसा पक्षी है जो पितृ-दूत कहलाता है। यदि दिवंगत परिजनों के लिए बनाए भोजन को यह पक्षी चख ले तो पितृ तृप्त हो जाते हैं। कौवा सूरज निकलते ही घर की मुंडेर पर बैठकर यदि कांव-कांव की आवाज निकाल दे, तो घर शुद्ध हो जाता है। श्राद्ध के दिनों में इस पक्षी का महत्व बढ़ जाता है। यदि श्राद्ध के सोलह दिनों में यह घर की छत का मेहमान बन जाए, तो इसे पितरों का प्रतीक और दिवंगत अतिथि स्वरूप माना गया है।