
शिमला जिले के ऊपरी इलाकों में हुई ओलावृष्टि से सेब के बगीचों में भारी नुकसान हुआ है। इसे देखते हुए डॉ. वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी और उद्यान विभाग ने समय रहते फफूंदनाशकों के छिड़काव करने की हिदायत दी है।
जिले के लगभग सभी बागवानों ने अपने बगीचों में एंटी हेल नेट लगाए हुए हैं लेकिन ओले पड़ने से कुछ बगीचों में हेलनेट भी टूट गए हैं। इससे सेब की फसल प्रभावित हुई है। ओलों से सेब के पेड़ों में घाव भी पड़ गए हैं। ऐसे में पेड़ों में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। बागवानी विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि बागवानों को ओलावृष्टि के तुरंत बाद बगीचों में 100 ग्राम कारबैन्डाजिम या 600 ग्राम मैनकोजैब का 200 लीटर पानी में घोल बनाकर सेब के पौधों पर छिड़काव करना चाहिए। इससे ओलावृष्टि से सेब के फलों और पत्तियों को होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। ओले पड़ने से पेड़ पर पड़े घाव भी जल्दी भर जाते हैं। इसके अलावा संक्रमण से भी बचाव हो जाता है।
यह तकनीक भी अपना सकते हैं बागवान
बागवानी विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि ओलावृष्टि के बाद 3 से 4 दिन के भीतर बोरिक एसिड (200 ग्राम) जिंक सल्फेट (500 ग्राम), अनबुझा चूना (250 ग्राम) का 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। इसके अलावा 10 से 12 दिन के बाद सूक्ष्म पोषक तत्वों एग्रोमिन, मल्टीपलैक्स या माइक्रोविट का 400 से 600 ग्राम 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें और ओलावृष्टि से प्रभावित बगीचों में यूरिया (1 किलोग्राम, 200 लीटर पानी में) का छिड़काव करें।
घोल बनाकर ही करें छिड़काव : नेगी
उद्यान विभाग जिला शिमला की उपनिदेशक सुदर्शना नेगी ने बागवानों को सलाह दी है कि बगीचों में फफूंदनाशकों का छिड़काव घोल बनाकर ही करें। बागवान अपनी मर्जी या बिना वैज्ञानिकों की सलाह लिए किसी भी तरह की स्प्रे न करें। स्प्रे शेड्यूल के अनुसार ही बागवान बगीचों में फफूंदनाशकों का छिड़काव करें। इसके लिए बागवान अधिक जानकारी अपने नजदीकी उद्यान केंद्र से भी ले सकते हैं