हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक गोशाला में पशुुओं के मारे जाने पर कड़ा संज्ञान लेते हुए कहा कि सरकार लावारिस पशुओं की दुर्दशा रोकने के लिए कुछ नेक काम करें। अदालत ने कहा कि गोमाता के नाम पर राजनीति न की जाए।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने सरकार के मुख्य सचिव को व्यक्तिगत तौर पर मामला देखने काे कहा। मामला कांगड़ा जिले के लूथान में राधे श्याम काऊ सेंचुरी का है। वर्ष 2021 में बनी गोशाला में करीब 300 पशुओं को रखने की क्षमता थी, लेकिन एक महीने के अंदर ही गोशाला में करीब एक हजार पशु हो गए।
संख्या बढ़ने से वहां पशुओं की दम घुटने से मौत होने लगी और एक साल में 1,200 पशुओं ने दम तोड़ दिया। पशुओं को मरने के बाद दफनाने के बजाय खुले में फेंका जा रहा था, जिससे आसपास के गांव में महामारी फैलने का डर सताने लगा। साथ ही पानी के स्रोत दूषित होने लगे। गांव के लोगों ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि जो पैसा जारी किया जा रहा है, उसका उपयोग गलत काम के लिए किया जा रहा है। अदालत ने जनहित याचिका पर संज्ञान लेते हुए पशुपालन विभाग को मामले में रिपोर्ट दायर करने को कहा।
अदालत ने रिपोर्ट पर नाराजगी जताते हुए जिला विधिक सेवाएं प्राधिकरण की सचिव को मामले में नियुक्त किया। सचिव ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि हरा चारा न मिलने और क्षमता से अधिक पशु होने से यहां मौतें हो रही हैं।
सरकार ने इसके बाद इसकी दुर्दशा को सुधारने के लिए एक करोड़ रुपये जारी किए, उसके बाद भी हालात नहीं सुधरे। सरकार की ओर से अभी तक करीब 5 करोड़ जारी किए जा चुके हैं। शराब की जितनी बोतलें बिकती हैं, उसका ढाई रुपये सेस इकट्ठा किया जाता है, जो गो सेवा आयोग को जाता है। मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर को होगी।