हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला में बादल फटने से पहले लोगों को अब अलर्ट मिल जाएगा, जिससे तबाही व जानमाल के नुकसान को कम किया जा सके। इसके लिए जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान एक प्रोजेक्ट के तहत काम कर रहा है। जिले में इसके लिए तीन जगह चिह्नित की गई हैं, जो बादल फटने की दृष्टि से अति संवेदनशील हैं। अर्ली वार्निंग सिस्टम का साॅफ्टवेयर मॉडल बंगलूरू में बनकर तैयार हो गया है। उम्मीद है कि 2025 की बरसात से पहले फोजल, छाकीनाला व सैंज में अर्ली वार्निग सिस्टम को स्थापित कर दिया जाएगा।
मंत्रालय केा भेजा मॉडल
संस्थान ने साॅफ्टवेयर का मॉडल तैयार करने के बाद इसे सेंसर के साथ अटैच करने व स्थापित करने की मंजूरी के लिए पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार को मॉडल भेजा है। जीबी पंत राष्ष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान मौहल इस प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय हिमालय अध्ययन मिशन के तहत कर रहा है। पिछले एक दशक हिमालय क्षेत्र में बादल फटने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। ऐसे में कुल्लू जिला में भी बादल फटने से भारी तबाही हो रही है।
बादल फटने से हो रही भारी तबाही
इसमें जानमाल के साथ करोड़ों की सरकारी व निजी संपत्ति को भारी नुकसान हो रहा है। बादल फटने से जानमाल का नुकसान कम हो, इसके लिए जीबी पंत पर्यावरण संस्थान मौहल अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाने का जा रहा है। संस्थान के निदेशक ई राकेश कुमार सिंह ने कहा कि अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाने की प्रक्रिया चल रही है। बंगलूरू में सॉफ्टवेयर मॉडल बनकर तैयार है। उन्होंने बताया कि अब इस मॉडल को सेंसर के साथ अटैच करने व स्थापित करने के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को मंजूरी के लिए भेजा है।
कुल्लू में हर साल फटते हैं बादल
बरसात में जिला कुल्लू बादल फटने के लिए अति संवेदनशील है। जुलाई से सितंबर तक होने वाली बरसात में हर साल पांच से छह बार बादल फटते हैं, जबकि 2023 में सबसे अधिक आठ से अधिक बादल बार फटने की घटना सामने आई थी। इस साल बरसात में कुल्लू के बाह्य सराज, निरमंड के बागीपुल व समेज में बादल फटने से भारी तबाही मची थी। इसमें बाढ़ से 30 मकान बह गए और छह बच्चों समेत 36 लोग लापता हो गए थे। करोड़ों रुपये की संपत्ति भी तहस-नहस हो गई। मणिकर्ण में भी बादल फटने से बलादी में आठ मकान व मलाणा प्रोजेक्ट का डैम भी टूट गया था।