हिमाचल प्रदेश की 412 पंचायतों में न तो स्थायी पंचायत सचिव तैनात हैं, न ही तकनीकी सहायक। 2020 में बनाई गईं इन पंचायतों में अब तक स्थायी तौर पर ग्राम रोजगार सहायक और पंचायत चौकीदारों की भी तैनाती नहीं हो पाई है। 412 नई पंचायतों में से अधिकतर के पास पंचायत घर की सुविधा नहीं है। इस बीच प्रदेश में नई पंचायतों के गठन की कवायद शुरू हो गई है। 2020 में जिस समय इन पंचायतों का गठन हुआ, उस समय भाजपा की सरकार थी। मौजूदा कांग्रेस सरकार का भी दो साल का कार्यकाल पूरा हो गया है, लेकिन अब तक स्थायी कर्मचारियों का बंदोबस्त नहीं हो पाया है। बिना कर्मचारियों के अगर नई पंचायतें बनती हैं तो यह लोगों के लिए सुविधा नहीं, बल्कि असुविधा का कारण बनेंगी। मौजूदा समय में प्रदेश में एक पंचायत सचिव के पास दो से तीन पंचायतों का जिम्मा है।
तकनीकी सहायकों की भी कमोवेश ऐसी ही स्थिति है। ग्राम रोजगार सहायकों की तैनाती न होने से पंचायतों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत काम भी प्रभावित हो रहा है। आर्थिक संसाधनों की कमी से जूझ रहे प्रदेश में अगर नई पंचायतें बनती हैं तो सरकार पर नए पंचायत घर बनाने, कर्मचारियों को वेतन देने और पंचायत प्रतिनिधियों को मानदेय की अदायगी का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। खास बात यह है कि केंद्र सरकार की ओर से पंचायतों को विकास कार्यों के लिए ग्रांट पंचायतों की संख्या नहीं, बल्कि आबादी के आधार पर जारी होती है। हिमाचल में पंचायतों की औसत आबादी 1700 के करीब है, जो सामान्य से काफी कम है। अगर नई पंचायतें बनाई जाती हैं तो केंद्र से मिलने वाली ग्रांट और भी कम हो जाएगी और पंचायतों में विकास कार्य प्रभावित होंगे।