हिमाचल प्रदेश को इस साल सेब बागवानी में 2,500 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ा। बारिश, ओलावृष्टि और असमय बर्फबारी के अलावा गर्मियों में तापमान में गिरावट के चलते इस बार सेब सीजन 1.80 करोड़ पेटी में ही सिमट गया। पिछले साल के मुकाबले 1.20 करोड़ पेटी कम उत्पादन हुआ। किन्नौर जिले में भी अब सेब सीजन खत्म हो गया है। हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी में सेब का करीब 6,000 करोड़ का प्रत्यक्ष योगदान होता है। इस साल सेब की फसल प्रभावित होने से करीब 2,500 करोड़ का सीधा नुकसान हुआ है। हालांकि किलो के हिसाब से सेब बिक्री की व्यवस्था शुरू होने से बागवानों को कम फसल के भी अच्छे दाम मिले हैं। मौसम की बेरुखी से इस साल सेब उत्पादन प्रभावित हुआ। सर्दियों में पर्याप्त बर्फबारी नहीं हुई, जिससे चिलिंग ऑवर्स पूरे नहीं हुए। फरवरी में सूखे जैसे हालात रहे। मार्च से अगस्त तक बारिश का दौर रहा। बारिश, ओलावृष्टि और असमय बर्फबारी के अलावा गर्मियों में तापमान गिरने से फ्लावरिंग को नुकसान हुआ। पॉलिनेशन की प्रक्रिया भी प्रभावित हुई। कुल मिलाकर सेब की फसल पर जलवायु परिवर्तन की मार पड़ी। इस सीजन में एमआईएस (मंडी मध्यस्थता योजना) के तहत कुल 52,824.09 मीट्रिक टन सेब खरीद हुई। इसमें एचपीएमसी ने 33,689.38 और हिमफेड ने 19,134.71 मीट्रिक टन सेब खरीदा है। बीते साल एचपीएमसी और हिमफेड ने 72,000 मीट्रिक टन सेब की खरीद की थी। फागू सेब नियंत्रण कक्ष से इस सीजन में कुल 12,597 सेब के वाहनों ने आवाजाही की है।