चंबा जिले के चुराह विधानसभा क्षेत्र के चचूल जंगल में देवदार के पेड़ों के अवैध कटान का बड़ा मामला सामने आया है।
हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के चुराह विधानसभा क्षेत्र के चचूल जंगल में देवदार के पेड़ों के अवैध कटान का बड़ा मामला सामने आया है। जंगल में आधा दर्जन देवदार के हरे पेड़ों के ठूंठ जमीन में दबे मिले हैं। स्थानीय लोगों की मदद से मिट्टी हटाने पर ये ठूंठ सामने आए हैं, जबकि दो दर्जन से अधिक देवदार के पेड़ नंबर डालकर काट दिए गए। लकड़ी भी गायब है। हालांकि, वहां वन निगम का अभी तक कोई लॉट ही नहीं लगा है।
ऐसे में कटे हुए पेड़ों के ठूंठों पर मिले ये नंबर आखिरकार वन विभाग ने क्यों लगाए। इसको लेकर भी जांच टीम गहनता से जांच कर रही है, लॉट लगाने से पूर्व पेड़ों की निशानदेही तब की जाती है, जब जंगल में कोई लॉट लगाना हो, जिससे चिह्नित पेड़ों को ही काटा जा सके, लेकिन चचूल जंगल में पेड़ तो कट चुके हैं, लेकिन अभी तक वहां वन निगम ने कोई लॉट नहीं लगाया है।
इस बात से स्वयं वन निगम इंकार कर रहा है। ऐसे में चचूल जंगल में कटे हुए देवदार के पेड़ों के ठूंठ इस बात की तरफ इशारा कर रहे हैं कि अवैध कटान के उद्देश्य से ये पेड़ काटे गए हैं। हालांकि, वन विभाग के कर्मचारियों ने कटे हुए कुछ पेड़ों की लकड़ी बरामद भी की है। जितने पेड़ों के ठूंठ मिले हैं, उसके मुताबिक लकड़ी नहीं मिल पाई है। इससे यह साबित हो रहा है कि जंगल से पेड़ों को अवैध रूप से काटकर लकड़ी सप्लाई की जा चुकी है। लोगों को गुमराह करने के उद्देश्य से कटे हुए पेड़ों पर जाली निशानदेही कर दी गई। अभी तक की जांच में इसी बात के संकेत मिल रहे हैं। मामले की शिकायत करने वाले कर्म सिंह ने बताया कि चचूल जंगल में 100 से अधिक पेड़ों का अवैध कटान हुआ है।
वह कई महीनों से विभाग के अधिकारियों से शिकायत कर रहे थे। कोई भी इसमें गंभीरता नहीं दिखा रहा था। अब मामले की जांच शुरू होने पर जंगल में देवदार के पेड़ों का बड़ा अवैध कटान सामने निकलकर आएगा। वहीं, मामले की जांच करने के लिए जब वन मंडल अधिकारी चुराह सुशील कुमार गुलेरिया सात किलोमीटर पैदल चलकर चचूल जंगल पहुंचे तो स्थानीय निवासी भी वहां पहुंच गए। लोगों ने जमीन में दबाए पेड़ों के ठूंठ उन्हें दिखाए। उन्होंने कटे हुए पेड़ों पर लगे नंबर देखे तो इसको लेकर संबंधित वन परिक्षेत्र अधिकारी को जवाब देने के निर्देश दिए। मामले में संबंधित वन रक्षक, वन खंड अधिकारी और वन परिक्षेत्र अधिकारी लपेटे में आ सकते हैं।