यदि आप जानवरों से प्यार करते हैं तो एक लाख रुपये देकर तेंदुआ और 12,000 रुपये सालाना देकर मोनाल को गोद ले सकते हैं। वन्य जीव को घर नहीं ले जाया जा सकता। उसे संबंधित वन्य जीव के भरण-पोषण के लिए वार्षिक शुल्क चुकाना होगा। इसकी एवज में उसका नाम संबंधित वन्य जीव के बाड़े के बाहर लिखा जाता है। हिमाचल प्रदेश वन विभाग के वन्यजीव विंग पशु गोद लेने और दान योजना के माध्यम से वन्यजीव संरक्षण को प्रोत्साहित कर रहा है। योजना 2022 में शुरू हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य आम नागरिकों, संस्थानों और कॉर्पोरेट जगत को प्रदेश के चिड़ियाघरों और पक्षी विहारों में रखे गए जानवरों की देखभाल में सहभागी बनाना है।
योजना में आयकर अधिनियम की धारा 80जी के तहत कर छूट भी मिलती है। योजना के अंतर्गत हिमाचल के चिड़ियाघरों और पक्षी अभयारण्यों जैसे हिमालयन नेचर पार्क, कुफरी तथा रेणुका जी मिनी जू में लोग तेंदुआ, मोनाल, हिमालयी थार और वेस्टर्न ट्रागोपन जैसे दुर्लभ प्रजातियों के संरक्षण में मदद कर सकते हैं। इनमें प्रत्येक पशु को गोद लेने की वार्षिक लागत उसकी देखभाल की जरूरतों पर निर्भर करती है। हिमाचल प्रदेश चिड़ियाघर और पक्षी अभयारण्य सोसायटी की ओर से चिड़ियाघरों और अभयारण्यों की देखभाल की जाती है। यह योजना न केवल वित्तीय सहायता के लिए है, बल्कि इसका उद्देश्य पर्यावरणीय जागरूकता बढ़ाना और आम लोगों को संरक्षण के प्रयासों में सक्रिय भागीदार बनाना भी है। इस पैसे को जानवर के खानपान और दवाइयों पर खर्च किया जाएगा।
सुक्खू ने मोनाल, विक्रमादित्य ने जाजुराना को लिया गोद
अब तक योजना के अंतर्गत 2023-24 में 4.22 लाख रुपये जुटाए गए हैं। कई व्यक्ति और संस्थान इस पहल में शामिल हुए हैं। अभी तक 13 जानवरों को गोद लिया गया है। इनमें तीन जाजुराना, दो तेंदुओं, 4 फीजेंट, एक घोरल, एक थार और दो मोनाल को गोद लिया गया है। लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने जाजुराना और मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने मोनाल गोद लिया है।
किसी जानवर या पक्षी को इस प्रकार ले सकते हैं गोद
तेंदुए को गोद लेने के लिए प्रति वर्ष 1 लाख का योगदान करना होता है। मोनाल जैसे पक्षियों को गोद लेने की लागत 12,000 रुपये है। वेस्टर्न ट्रागोपन, हिमालयी थार और घोरल जैसे जानवरों के लिए 25,000 प्रतिवर्ष देना पड़ता है। यदि कोई व्यक्ति या संस्था संपूर्ण चिड़ियाघर को गोद लेना चाहती है, तो एक करोड़ रुपये सालाना है। इन शुल्कों के माध्यम से जुटाई गई राशि का उपयोग जानवरों के भोजन, देखभाल, और चिकित्सा सुविधाओं के लिए किया जाता है।
लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान की शुरुआत की गई है। संस्थानों और कॉर्पोरेट जगत को प्रदेश के चिड़ियाघरों और पक्षी विहारों में रखे गए जानवरों की देखभाल में सहभागी बनने के लिए आमंत्रित किया जा रहा है।