चौपाल में 45 पेड़ काटने का मामला पहुंचा हाईकोर्ट, डिविजन कमिश्नर शिमला के आदेश को दी चुनौती

 

matter of cutting 45 trees in Chaupal reached High Court order of Division Commissioner Shimla was challenged

चौपाल में 15 बीघा जमीन पर वर्ष 2018 में सेब के 45 पेड़ों के काटने का मामला हाईकोर्ट पहुंच गया है। हाईकोर्ट में इसकी सुनवाई छुट्टियों के बाद होगी। याचिकाकर्ता ने मंडलायुक्त शिमला के फैसले को चुनौती दी है। मंडलायुक्त ने फैसले दिया था कि जहां पर अतिक्रमणकारी ने सेब के पौधे लगाए हैं, वह भूमि सरकार की है।

हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश बिपिन चंद्र नेगी की विशेष खंडपीठ करेगी। याचिकाकर्ता ने मंडलायुक्त के फैसले को चुनौती है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि बिना किसी दस्तावेज के मूल्यांकन किए बिना सिर्फ जो जवाब दायर किया है, उसके आधार पर फैसला दिया है। प्रदेश सरकार ने सार्वजनिक परिसर अधिनियम 1971 लागू किया, जिसके तहत सारी वेस्ट लैंड और रियासती शासकों की भूमि को प्रदेश सरकार की संपत्ति घोषित किया गया, जबकि यह जमीन न तो किसी व्यक्ति की निजी भूमि है, न ही सरकार की और न ही वेस्टलैंड है।

राजस्व रिकॉर्ड के मुताबिक यह जमीन बधान समुदाय की है, जिसको यह जमीन गोरखों से लड़ाई करने के बाद मिली थी। यह भूमि वर्ष 1913-14 में कुंगु नाली फॉरेस्ट चौपाल के नाम से दर्ज है। इस भूमि पर याचिकाकर्ता सहित अन्य गांव के लोग सदियों से जीवनयापन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने 1977 में पेड़ के बदले पेड़ लगाने की नीति बनाई, जिसका पालन नहीं किया जा रहा है।

वर्ष 2018 में मंडलायुक्त शिमला ने इस भूमि पर लगे सेब के पेड़ों को काटने के आदेश दिए थे। इनमें से विभाग ने 45 पेड काट दिए। दसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में स्टे की दरख्वास्त लगाई और हाईकोर्ट ने पेड़ कटाई पर तुरंत रोक लगा दी। 9 दिसंबर 2024 को मंडलायुक्त के फैसले आने के बाद हाईकोर्ट की ओर से जो अंतरिम रोक लगाई थी, उसे भी हटा दिया है, जिसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। अब इस मामले की सुनवाई मार्च में होगी।

सरकार की ओर से सार्वजनिक परिसर अधिनियम 1971 के तहत जिन मामलों में कार्रवाई की गई है, सुप्रीम कोर्ट में उन 28 मामलों में 28 जनवरी को सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिसंबर माह में अतिक्रमण से जुड़े करीब 50 ऐसे ही मामलों को वापस हाईकोर्ट भेज दिया था। साथ ही ऐसे मामलों को फिर से सुने जाने के निर्देश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि इन मामलों की सुनवाई के दौरान तथ्यों को दरकिनार किया गया है।

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