
बहुचर्चित गुड़िया दुष्कर्म व हत्या मामले से जुड़े सूरज लॉकअप हत्याकांड में कोर्ट ने फैसले में कहा कि पुलिस हिरासत में यातना से मौत सभ्य समाज में जघन्य अपराध है। ऐसे दोषियों पर नरमी नहीं बरती जा सकती। अनुच्छेद 21 के तहत मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार है। इससे दोषियों, विचाराधीन बंदियों और हिरासत में कैदियों को वंचित नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला देते कहा कि हिरासत में हिंसा (यातना और लॉकअप में मौत) व्यक्ति के अधिकारों पर आघात है। हिरासत में यातना केवल शारीरिक दर्द ही नहीं है, यह मानसिक पीड़ा है।
जब भी मानवीय गरिमा को ठेस पहुंचती है तो सभ्यता एक कदम पीछे हट जाती है। एक व्यक्ति उस समय अपना मौलिक जीवन खो देता है, जब कोई पुलिसकर्मी उसे गिरफ्तार करता है। अगर सरकारी अधिकारी कानून तोड़ने वाला बन जाता है, तो कानून के प्रति अवमानना पैदा होगी और अराजकता को बढ़ावा मिलेगा। हर व्यक्ति में खुद कानून बनने की प्रवृत्ति होगी। हिरासत में यातना और मृत्यु की बढ़ती घटनाएं दर्शाती हैं कि अभी भी मानव अधिकार का सबसे ज्यादा उल्लंघन हो रहा है। वह भी कानून प्रवर्तन एजेंसियों के हार्थों। दोषियों की ओर से सजा कम करने के लिए कोई सबूत नहीं दिया गया। नरमी बरतने का आग्रह जरूर किया।
सूरज के परिजनों को मिलेगा मुआवजा
कोर्ट ने मुआवजा देने की सिफारिश करते हुए निर्देश दिया है कि सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण शिमला सूरज के परिजनों को मुआवजे के लिए नियमानुसार मामले को उठाएंगे। वहीं, दोषियों के खिलाफ सभी मूल सजाएं एक साथ चलेंगी। जुर्माना वसूल होने पर उसका 90 प्रतिशत सूरज के परिजनों को बराबर बांटा जाएगा और शेष सरकारी खजाने में जाएगा।
हाईकोर्ट में देंगे फैसले को चुनौती
डीएसपी मनोज जोशी की ओर से पैरवी कर चुके वरिष्ठ अधिवक्ता अजय कोछड़ ने बताया कि फैसले से संतुष्ट नहीं हैं। सीबीआई कोर्ट के इस निर्णय को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती देंगे। उच्च न्यायालय से सजा को निलंबित करने की अपील करेंगे। दूसरी ओर, सजा सुनाए जाने के दौरान कोर्ट परिसर में मौजूद रहे दोषी पुलिस कर्मियों के परिजनों ने भी कहा कि उनके साथ नाइंसाफी हुई है। वे न्याय के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।