
हिमाचल प्रदेश बागवानी विभाग ने विलुप्त हो रही देसी मधुमक्खियों (एपीस सेराना) के संरक्षण के लिए मड हाइब नामक एक नई तरह का मधुमक्खी घर विकसित किया है। इसमें बागवान अपने बगीचों और घरों में मधुमक्खियों को स्थायी तौर पर रख सकते हैं। यह घर मधुमक्खियों के लिए प्राकृतिक और टिकाऊ आवास प्रदान करता है, जिससे शहद का उत्पादन बढ़ता है और मधुमक्खी पालन को अधिक सुविधाजनक बुनाया जा सकता है। वर्तमान में मधुमक्खियों की देसी प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं।
मड हाइब प्राकृतिक सामग्री से बिना खर्चे के बनाए जाते हैं, जो पर्यावरण के लिए सुरक्षित होते हैं। इसे लाल मिट्टी, गोबर, पत्थर और सूखी घास से बनाकर तैयार किया जाता है। इस एक बॉक्स में एपीस सेराना मधुमक्खियों की आठ ट्रे आती हैं। वर्तमान में बगीचों में परागण के लिए ज्यादातर इटालियन मधुमक्खियों (एपीस मेलिफेरा) का इस्तेमाल करते हैं। यह देसी मधुमक्खियों के मुकाबले ज्यादा मात्रा में शहद तैयार करती हैं। हालांकि गुणवत्ता के अनुसार देसी मधुमक्खियों का शहद ज्यादा बेहतर माना जाता है।
एपीस मेलिफेय) सेराना मधुमक्खियों का एक परिवार साल भर में 6 से 10 किलो शहद बनाता है। इनके परिवार में 20 से 30 मधुमक्खियां होती हैं। इसमें एक रानी मक्खी, एक हजार से 1500 ड्रोन और बाकी कमेरी मक्खियां होती हैं। वहीं एपीस मेलिफेरा मधुमक्खियां एक परिवार साल भर में 30 से 40 किलो तक शहद तैयार करता है। इसलिए ज्यादातर लोग बगीचों में परागण के लिए इन्हीं मधुमक्खियों इस्तेमाल करते हैं। उद्यान विभाग मधुमक्खी पालन में रुचि रखने क लोगों को मड हाइब बनाने के लिए प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता प्रदान करेगा।
962 में लाई गई थी एपीस मेलिफेरा मधुमक्खी
एपीस मेलिफेरा मधुमक्खी 1962 के दशक में देश में पहली बार हिमाचल प्रदेश में आई थी। प्रदेश भर में 9 से 10 हजार लोग मधुमक्खी पालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। जिनके पास 1 लाख के करीब बॉक्स परागण के लिए हैं। व्यावसायिक फसलों की बढ़ती हुई खेती को देखते हुए भविष्य में मधुमक्खियों की मांग बढ़ने वाली है। इसके लिए देसी मधुमक्खियों का संरक्षण जरूरी हो गया है। मड हाइब को बागवान अकेले व सामुदायिक तौर पर बिना खर्चे के अपने घरों और बगीचों में लगा सकते हैं। – डॉ दलीप नरगेटा, मौन पालन विशेषज्ञ, उद्यान विभाग शिमला