
पीली चोंच वाले पक्षी अल्पाइन चॉफ से सीख लेकर वैज्ञानिकों ने बौद्ध धर्मानुयायियों में पवित्र माना जाने वाला पेड़ शुकपा उगाने में कामयाबी हासिल की है। गोबर में उपचार से यह संभव हुआ है। यह हिमाचल और लद्दाख के शीत मरुस्थल का प्रमुख पेड़ है। मानवीय प्रयासों से इसे उगाने में सफलता नहीं मिल रही थी। प्राकृतिक तरीके से यह पेड़ पीली चोंच वाले पक्षी अल्पाइन चॉफ की मदद से उगता रहा है। यह पक्षी शुकपा के फल खाता है तो बीज की डोरमेंसी इसके पेट में खत्म हो जाती है। फिर पक्षी जहां-जहां भी बीठ करता है, वहां-वहां इसके मिट्टी में मिलने पर यह खुद पैदा हो जाता है। इस पक्षी की बीट तो ज्यादा मात्रा में उपलब्ध नहीं होती है, पर अनुसंधानकर्ताओं ने शुकपा के बीजों की प्रसुप्तावस्था को तोड़ने के लिए गाय के गोबर में रखकर सफल प्रयोग किए।
अब शुकपा शीत मरुस्थल की नंगी पहाड़ियों के अलावा कई अन्य क्षेत्रों में उगने लगा है। इसका वैज्ञानिक नाम जुनीपरस पोलिकार्पोस है। हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान शिमला ने वर्ष 2003 में इसे विलुप्त होती प्रजातियों में सूचीबद्ध कर लिया था। इसके बीजों को प्रसुप्तावस्था से बाहर लाने की विधि और पौधरोपण तकनीक पर शोध की जरूरत जताई। इसके लिए दो परियोजनाओं पर वर्ष 2006 से 2011 और 2016 से 2021 तक विशेष काम किया। स्थानीय लोगों ने अनुसंधान करने वालों को बताया कि शीत मरुस्थल में शुकपा को उगाने में पूर्व में इस पक्षी की बड़ी भूमिका रही है। जहां आदमी नहीं जा पाता, वहां भी यह पक्षी उड़ता रहा है और अपनी बीट से शुकपा के बीज बोता रहा है।
हालांकि कालांतर में इसे प्राकृतिक तरीके से बोया जाना और उगना रुकने लगा। पक्षी की कम सक्रियता भी इसका कारण हो सकता है। इससे सीख लेकर संस्थान के वैज्ञानिकों ने भेड़-बकरियों के मल और गाय के गोबर में बीज डालकर प्रयोग किए। गोबर में दो माह तक रखने के बाद बीज मिट्टी में अच्छी तरह से उग गए। ताबो, कुल्लू, शिलारू आदि में इसकी नर्सरियां तैयार की गईं। अब वन विभाग और अन्य संस्थाओं को इसके हजारों पौधे बांटे जा रहे हैं। शुकपा का पेड़ – 60 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में भी जिंदा रह सकता है। पहले यह शीत मरुस्थल में प्रमुख वनस्पति रहा है।
क्या बताते हैं वैज्ञानिक
हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. पीतांबर सिंह नेगी ने कहा कि वह किन्नौर के छितकुल से ताल्लुक रखते हैं। शुकपा के पेड़ वहां बौद्ध मठ के आसपास उगे होते थे, जिनका उगना कम होने लगा। बुजुर्गों से सुना जाता रहा है कि पीली चोंच वाला पक्षी अल्पाइन चॉफ इसके फल खाता है और जहां-जहां उसकी बीट गिरती है, वहां-वहां इसके पेड़ उगते हैं। फिर लंबे प्रयोगों के बाद गोबर के गोलों में प्रसुप्तावस्था खत्म करने में कामयाबी मिली।