सूबे की नदियों और खड्डों में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की इस साल की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में 37 नदियों पर 136 स्थानों पर नदियों की जल गुणवत्ता की जांच की गई। इनमें से नौ नदियों-खड्डों में 19 स्थानों पर बीओडी (बायोलोजिकल ऑक्सीजन डिमांड) के संबंध में पानी के सैंपल फेल हुए हैं। अश्विनी खड्ड, बद्दी की बाल्द, सिरमौर की गिरि, रामपुर की मारकंडा, रोहड़ू की पब्बर, नालागढ़ की रत्ता, रोहड़ू की शिकारी खड्ड, नालागढ़ की सरसा और परवाणू की सुखना खड्ड में प्रदूषण का स्तर तय मापदंडों से ऊपर है। शिमला में बहने वाली अश्विनी खड्ड प्रदेश की सबसे प्रदूषित नदी है। औद्योगिक अपशिष्टों के अनियमित निपटान, बिना ट्रीटमेंट सीवेज और कृषि गतिविधियों से निकलने वाले अपवाह के कारण नदियाां प्रदूषित हो गई हैं। जल प्रदूषण न केवल जलीय जीवन को खतरे में डालता है, बल्कि स्थानीय समुदायों के लिए पीने के पानी के प्राथमिक स्रोत के लिए भी खतरनाक है। हिमाचल में नदी जल प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव बहुआयामी हैं, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि और जैव विविधता को प्रभावित कर रहे हैं। इससे जलजनित बीमारियां होती हैं और निवासियों के लिए गंभीर खतरा पैदा हो रहा है। इन नदियों पर निर्भर किसानों को दूषित सिंचाई जल के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। विभिन्न मछली प्रजातियों सहित नाजुक जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान होता है, जिससे प्राकृतिक संतुलन बाधित हो रहा है।