मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने मामले को सुना। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि इस्तीफे स्वीकार नहीं करने पर निर्दलियों को याचिका दायर करनी पड़ी।
निर्दलीय विधायकों के इस्तीफे मामले में गुरुवार को प्रदेश हाईकोर्ट में बहस हुई। विधानसभा अध्यक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से कोर्ट में पेश हुए। मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने मामले को सुना। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि इस्तीफे स्वीकार नहीं करने पर निर्दलियों को याचिका दायर करनी पड़ी। अदालत को बताया कि
अगर कोई निर्दलीय विधायक बिना किसी दबाव और अपनी स्वेच्छा से त्यागपत्र देता है तो उसे स्वीकार कर दिया जाता है, इस मामले में ऐसा नहीं हुआ है। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह निर्दलियों की ओर से कोर्ट में पेश हुए। जब मामले को सुना जा रहा था तो सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल विधानसभा अध्यक्ष की ओर से वीडियो काॅन्फ्रेंसिंग से पेश हुए। उन्होंने बताया कि विधानसभा अध्यक्ष को संविधान ने शक्तियां दी हैं, जिसका वह प्रयोग करते हैं। अदालत ऐसे मामलों में दखलअंदाजी नहीं कर सकती। केवल समय-सीमा निर्धारित कर सकती है।
इस्तीफे स्वीकार करना या न करना अध्यक्ष का अधिकार है। न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ ने सिब्बल से पूछा कि निर्दलियों ने जब स्वेच्छा से त्यागपत्र दिए हैं तो स्वीकार क्यों नहीं किए। जवाब देते हुए उन्होंने बताया कि निर्दलियों ने 22 मार्च को अपने-अपने इस्तीफे सौंपे। 23 को सभी भाजपा ज्वाइन करते हैं, उसके बाद चार्टर्ड प्लेन में घूमते हैं। सब बातों को देखते हुए विस अध्यक्ष ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया था। सिब्बल जब अपनी दलीलें दे रहे थे तो मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आप 2 बजे के बाद दलीलें जारी रखें। इस पर उन्होंने असमर्थता जताई। इसके बाद हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल को 4 बजे के बाद मामले को सुनने के आदेश पारित किए।