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केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला (सीपीआरआई) में देश के प्रतिष्ठित कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों और सहायक प्रोफेसरों के लिए चल रहे विंटर स्कूल कार्यक्रम में वीरवार को प्रतिभागियों ने शिमला में स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तीन संस्थानों का दौरा किया। पाठ्यक्रम निदेशक डॉ. आलोक कुमार और समन्वयक डॉ. अजय ठाकुर ने बताया कि प्रतिभागियों ने वीरवार को आईएआरआई, एनबीपीजीआर और आईआईडब्ल्यूबीआर का किया दौरा कर कृषि क्षेत्र में हो रहे अनुसंधानों को लेकर जानकारी हासिल की।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के क्षेत्रीय कार्यालय के ढांढा फार्म में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. संतोष वाटपाडे ने प्रशिक्षुओं को जलवायु परिवर्तन से सेब और गुठलीदार फलों के उत्पादन और गुणवत्ता पर पड़ रहे प्रभाव की जानकारी दी। डॉ. संतोष ने बताया कि इस साल सर्दियों में पर्याप्त बारिश बर्फबारी न होने से करीब दो हफ्ते पहले ही गुठलीदार फलों में फ्लावरिंग शुरू हो गई है। मार्च में अगर बारिश या ओलावृष्टि हुई तो इस साल गुठलीदार फलों का उत्पादन और गुणवत्ता प्रभावित होगी। उन्होंने विंटर स्कूल के एक प्रतिभागी के आग्रह पर हिसार स्थित संस्थान में प्रदर्शन के लिए कीवी के दो पौधे भी उपलब्ध करवाए। शिमला के फ्लावरडेल स्थित भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान में प्रशिक्षुओं ने गेहूं में लगने वाले रतुआ रोग के बारे में जानकारी प्राप्त की।
संस्थान के डॉ. ओपी गंगवार और डॉ. चारू लता ने प्रशिक्षुओं को पीला रतुआ, भूरा रतुआ, काला रतुआ, गेहूं की पत्ती में जंग और ब्लैक स्टेम रस्ट के बारे में विस्तृत जानकारी दी। राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो के फागली स्थित क्षेत्रीय कार्यालय में डॉ. नरेंद्र नेगी ने प्रतिभागियों को यूएसए और न्यूजीलैंड से भारत में कीवी के आयात, नौणी और बजौरा फार्म से व्यवसायिक प्रयोग के लिए वितरण की जानकारी दी। इसके अलावा क्षेत्रीय कार्यालय के क्रिया-कलापों को लेकर डाक्यूमेंट्री भी दिखाई गई। प्रतिभागियों को राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो का फील्ड जीन बैंक भी दिखाया गया। विंटर स्कूल में हिमाचल, गुजरात, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और असम सहित 6 राज्यों के कृषि वैज्ञानिक भाग ले रहे हैं।