
महाशिवरात्रि महोत्सव में पहुंचे देवी-देवताओं में से अधिकतर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। इन देवी-देवताओं के इतिहास, उनके जुड़ी पौराणिक दंत कथाओं और प्रमाणों से इसकी झलक देखने को मिलती है। राज देवता माधो राय को भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप माना जाता है। बड़ादेव कमरुनाग को महाभारत के वीर योद्धा रतनयक्ष के प्रतिरूप में पूजा जाता है। इसके अलावा देव छांजणू बलशाली भीम और हिडिंबा के पुत्र घटोत्कच के रूप में हैं। सराज क्षेत्र के थाची में बिठू नारायण का मंदिर मौजूद है।
बिठू नारायण का भी अंतरराष्ट्रीय महाशिवरात्रि महोत्सव में भाग लेने वाले देवताओं में अहम स्थान है। महाभारत के युद्ध में अर्जुन को विराट रूप दिखाने वाले भगवान श्रीकृष्ण के प्रतिरूप देव बिठू नारायण अंतरराष्ट्रीय महाशिवरात्रि महोत्सव की शोभा बढ़ा रहे हैं। रथ में 16 मोहरे लगे होने से बिठू नारायण की अपनी अलग पहचान है। देवता को सोलह कला पूर्ण माना गया है। बिठू नारायण के थाची स्थित मंदिर में पाषाण काल की मूर्ति आज भी मौजूद है। देव छांजणू और छमांहू का भी महाशिवरात्रि में अहम स्थान है। देव छांजणू का बौंछड़ी, जबकि छमांहू देवता का खणी में मूल स्थान है।
देवता छमांहू शेषनाग का अवतार तो देव छांजणू माता हिडिंबा के बेटे घटोत्कच का प्रतिरूप माने जाते हैं। दोनों देवता राज देवता माधो राय की जलेब में सबसे आगे चलते हैं। देवता के कारदारों के अनुसार देव घटोत्कच गढ़पति देवता हैं। दोनों देवताओं ने अगर कहीं जाना होता है तो एक साथ निकलते हैं। यहां तक कि मनाली में देवी हिडिंबा से मिलने जाने के लिए भी दोनों रथ एक साथ निकलते हैं। हिडिंबा देवी के यहां कोई भी कारज उनके पुत्र घटोत्कच के बिना संपन्न नहीं होता। उधर, सर्व देवता सेवा समिति के अध्यक्ष शिवपाल शर्मा का कहना है कि देवी-देवताओं का समृद्ध इतिहास है। देवी-देवताओं के बारे में पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। आज भी देवी-देवता सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हैं