
किडनी रोग से पीड़ित लाखों मरीजों के लिए किडनी प्रत्यारोपण सबसे प्रभावी और स्थायी उपचार साबित हो सकता है। विश्व किडनी दिवस के अवसर पर विशेषज्ञों ने बताया कि अंतिम चरण के गुर्दा रोग से जूझ रहे मरीजों के लिए प्रत्यारोपण डायलिसिस से बेहतर विकल्प है। यह न केवल जीवन औसत को बढ़ाता है बल्कि मरीज की जीवनशैली को भी सामान्य बनाए रखने में मदद करता है। एम्स बिलासपुर के नेफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) संजय विक्रांत ने बताया कि भारत में हर साल करीब दो लाख लोग किडनी प्रत्यारोपण का इंतजार करते हैं, लेकिन मात्र 12,000 मरीजों को ही यह सुविधा मिल पाती है। इसका मुख्य कारण अंग दान की कमी है। हालांकि, सरकार और विभिन्न संस्थाएं मृतक अंग दान को प्रोत्साहित करने के लिए लगातार जागरुकता अभियान चला रही हैं।
अंतिम चरण की गुर्दा विफलता एक गंभीर स्थिति है, जिसमें गुर्दे पूरी तरह से काम करना बंद कर देते हैं। ऐसे में मुख्य रूप से दो प्रकार के उपचार उपलब्ध हैं। इसमें डायलिसिस प्रक्रिया से शरीर से अपशिष्ट पदार्थों और अतिरिक्त तरल पदार्थों को हटाया जाता है। डायलिसिस की पहली प्रक्रिया हेमोडायलिसिस है। यह सबसे आम प्रक्रिया है, जिसमें मशीन के माध्यम से रक्त शुद्ध किया जाता है। इसे सप्ताह में तीन बार अस्पताल में करवाना पड़ता है। वहीं दूसरी प्रक्रिया पेरीटोनियल डायलिसिस है। इसमें मरीज घर पर ही पेट में एक विशेष तरल डालकर रक्त शुद्ध कर सकता है। यह प्रक्रिया अधिक सुविधाजनक हो सकती है, लेकिन इसमें संक्रमण का जोखिम अधिक होता है। डायलिसिस जीवन बचाने में मदद करता है, लेकिन यह लंबे समय तक प्रभावी समाधान नहीं है।
वहीं दूसरे प्रकार के उपचार में गुर्दा प्रत्यारोपण किया जाता है, जोकि सबसे बेहतर विकल्प है। गुर्दा प्रत्यारोपण में स्वस्थ व्यक्ति का गुर्दा मरीज को लगाया जाता है। यह जीवित दाता (परिवार के सदस्य या दोस्त) या मृतक दाता (अंग दान करने वाला) से प्राप्त किया जा सकता है। गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद डायलिसिस की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। मरीज की ऊर्जा और जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है। लंबी अवधि में मृत्यु का जोखिम कम होता है। लेकिन इसके साथ ही इसकी कुछ चुनौतियां भी हैं। इनमें मरीजों को प्रत्यारोपण के लिए उपयुक्त दाता मिलना कठिन होता है। मरीज को जीवन भर इम्यूनो सप्रेसेंट दवाइयां लेनी पड़ती हैं। सर्जरी से जुड़ी जटिलताएं और संभावित जोखिम रहते हैं।
अंग दान की जरूरत और जागरूकता
डॉ. संजय विक्रांत ने कहा कि भारत में 80 फीसदी से अधिक गुर्दा प्रत्यारोपण जीवित दाताओं से होते हैं, जबकि मृतक दान बहुत कम होता है। इसके चलते हजारों मरीजों को समय पर गुर्दा नहीं मिल पाता और उनकी जान चली जाती है। यदि अधिक लोग मृत्यु उपरांत अंग दान के लिए आगे आएं, तो यह अंतर कम किया जा सकता है। उन्होंने अपील की कि इस विश्व गुर्दा दिवस पर संकल्प लें कि हम अंगदान के प्रति जागरूकता फैलाएंगे और अधिक से अधिक लोगों को इस नेक कार्य के लिए प्रेरित करेंगे।
सरकार और समाज की भूमिका
भारत सरकार राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन के माध्यम से अंग दान को बढ़ावा देने के लिए अभियान चला रही है। इसके तहत मृतक अंग दान को प्रोत्साहित करने, अस्पतालों में प्रत्यारोपण सुविधाओं का विस्तार करने और लोगों को जागरूक करने की दिशा में कई कदम उठाए जा रहे हैं।
चमियाना में साढ़े तीन साल में नहीं हुआ एक भी किडनी ट्रांसप्लांट
अटल सुपर स्पेशलिटी आयुर्विज्ञान संस्थान (चमियाना) के नेफ्रोलॉजी विभाग में पिछले तीन साल छह महीने से एक भी किडनी ट्रांसप्लांट नहीं हो पाया है। वहीं जो आईसीयू बनाया गया था वह भी निरस्त कर दिया गया है। इस सुविधा के बंद पड़ने के कारण प्रदेश के सैकड़ों मरीजों को परेशान होना पड़ रहा है। इन मरीजों को अब इलाज के लिए पड़ोसी राज्य का रुख करना पड़ रहा हैं। वहीं राज्य सरकार द्वारा इस ओर ध्यान न देना भी इसका मुख्य कारण है। अटल सुपर स्पेशलिटी आयुर्विज्ञान संस्थान (चमियाना) के नेफ्रोलॉजी विभाग में पिछले काफी समय से डॉक्टरों की कमी है। इस वजह से अगस्त 2021 के बाद से एक भी किडनी ट्रांसप्लांट नहीं हो पाया है।
13 अगस्त 2019 को एक साथ शुरू किए दो ट्रांसप्लांट
हालांकि इससे पूर्व में नेफ्रोलॉजी विभाग ने 2019 से लेकर 2021 तक पांच किडनी ट्रांसप्लांट करवाए। लेकिन इसके बाद से व्यवस्था ठप है। अब महज किडनी रोगियों के डायलिसिस ही किए जा रहे हैं। जबकि इसके विपरीत जून 2024 से टांडा मेडिकल कॉलेज में अब तक आठ और एम्स बिलासपुर में अक्तूबर 2024 से अब तक तीन ट्रांसप्लांट किए जा चुके हैं। ऐसे में अब सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठना शुरू हो गए हैै। बता दें कि इस गंभीर स्थिति को देखते हुए अस्पताल आए मरीजों ने राज्य सरकार से अपील की है कि वह जल्द से जल्द यहां पर किडनी ट्रांसप्लांट शुरू करवाए। प्रदेश में सबसे पहले 13 अगस्त 2019 को पहली मर्तबा दो किडनी ट्रांसप्लांट शुरू किए गए। इसके बाद 11 नवंबर 2019 को तीसरा और 23 अगस्त 2021 को चौथा और पांचवां किडनी ट्रांसप्लांट किया। एम्स दिल्ली से डॉ. बंसल और उनकी टीम ने आईजीएमसी के डॉक्टरों के साथ मिलकर यह ट्रांसप्लांट किए