
प्रदेश में धड़ल्ले से हो रहे बेतरतीब और बिना योजना के निर्माण के चलते प्रदेश में कई जगह पर भू-जलस्तर तेजी से गिर रहा है। अगर जल्द कोई समाधान न निकाला गया तो पानी के लिए लोगों को भटकना पड़ेगा। सबसे अधिक चिंता प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र बद्दी, नालागढ़, कालाअंब और बरोटीबाला की है। मौजूदा समय में इन औद्योगिक क्षेत्रों में भू-जलस्तर 50 से 70 मीटर नीचे चला गया है। वहीं कुछ क्षेत्रों में भू-जलस्तर 90 मीटर नीचे पहुंच गया है।
तेजी से कम हो रहे भू-जलस्तर का मुख्य कारण कंकरीटीकरण है, जिस वजह से बारिश और जलस्रोतों का पानी जमीन में रिस नहीं पा रहा है। इसके अलावा ट्यूबवेल और बोरवेल से निकलने वाले पानी की बर्बादी भी मुख्य कारण मानी जा रही है। विशेषज्ञों की मानें तो शहरीकरण को अधिक बढ़ावा देने के चलते नालों और कूहलों को कंकरीट से पक्का किया जा रहा है। इस वजह से जमीन का जलस्तर रिचार्ज नहीं हो पा रहा है, जिसके लिए बारिश कम होने के साथ लोग भी जिम्मेदार हैं।
केंद्रीय भू-जल बोर्ड की ओर 2022 में जारी (2012-2021) जनवरी के औसत जलस्तर के आंकड़ों से दस वर्षों में जलस्तर में उतार-चढ़ाव का पता चलता है। इसमें 104 स्टेशनों में से 58 में जस्तर में वृद्धि और 46 में गिरावट दर्ज की गई। इनमें जिला कांगड़ा में जलस्तर में न्यूनतम 0.03 मीटर की वृद्धि देखी गई, जबकि औद्योगिक क्षेत्रों में जलस्तर में 0.02 मीटर से लेकर 12.47 मीटर की गिरावट दर्ज की गई है। सोलन की कई जगह पर 25 फीसदी की वृद्धि भी हुई है और सिरमौर जिले में अधिकतम 12.47 मीटर की गिरावट देखी गई। वहीं जनवरी 2021 से जनवरी 2022 के वार्षिक रिपोर्ट में केवल नालागढ़ घाटी के उत्तरी भाग में जलस्तर में चार मीटर से अधिक की गिरावट देखी गई है।
लोगों को जागरूक होना पड़ेगा, योजनाबद्ध तरीके से हो निर्माण
केंद्रीय भू-जल बोर्ड के नॉर्दन हिमालय रिजन धर्मशाला में तैनात वैज्ञानिक डाॅ. संजय पांडे और डाॅ. मनोहर कुमार ने कहा कि कंकरीटीकरण के कारण भू-जलस्तर में गिरावट देखने को मिल रही है। प्रदेश में औद्योगिक क्षेत्रों और शहरों में यह समस्या ज्यादा है। बद्दी, बरोटावाला,नालागढ़ और कालाअंब में वर्तमान समय में भू-जलस्तर 50 से 70 मीटर तक पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि भू-जलस्तर को बढ़ाने के लिए लोगों को जागरूक होना पड़ेगा और योजनाबद्ध तरीके से निर्माण करना चाहिए।