46 दिनों बाद मनाली-लेह मार्ग पर बर्फ की कई फीट ऊंची दीवारों के बीच से दाैड़े पर्यटक वाहन

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After 46 days, tourist vehicles ran through several feet high walls of snow on the Manali-Leh road

 431 किमी लंबी सामरिक महत्व की मनाली-लेह सड़क को सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने 46 दिन की कड़ी मशक्कत के बाद यातायात के लिए बहाल कर दिया है। अब लेह-लद्दाख की तरफ सैन्य और पर्यटक वाहनों का जाना सुगम हो जाएगा। बीआरओ ने लद्दाख के पांच वर्षीय तेनजिन देचन के रिबन कटवाकर सड़क का शुभारंभ करवाया। मंगलवार से सड़क के दोनों तक बर्फ की कई फीट ऊंची दीवारों के बीच से वाहनों की आवाजाही शुरू हो गई है। अब पर्यटक भी इसी मार्ग पर दारचा से बारालाचा व सरचू होकर लेह व लद्दाख जा सकेंगे। पहले सैलानियों को दारचा से वाया जांस्कर जाना पड़ रहा था। इससे लाहौल के पर्यटन को भी पंख लगेंगे। मंगलवार को मनाली की तरफ से बड़ी संख्या छोटे वाहन लेह के लिए रवाना हुए। वहीं सेना के भी कई वाहन राशन लेकर लेह की तरफ रवाना हो गए हैं।

ऑपरेशन सिंदूर के बीच दुनिया के सबसे ऊंचे दर्रे से होकर गुजरने वाली मनाली-लेह सड़क को खोलने के लिए सीमा सड़क संगठन पर लगातार दबाव बना हुआ था। ऑपरेशन को देखते हुए इस सड़क से जल्द भारतीय सेना के वाहनों को लद्दाख की तरफ भेजना जरूरी हो गया था। लिहाजा सीमा सड़क संगठन ने समुद्रतल से 16,000 कीट से भी अधिक की ऊंचाई से गुजरने वाली इस सड़क को सोमवार को बहाल कर दिया था। लेकिन मार्ग मंगलवार से सभी तरह के वाहनों की आवाजाही के लिए खोला गया।  सीमा सड़क संगठन ने 431 किमी लंबी मनाली-लेह एनएच-03 को मंगलवार से आधिकारिक तौर पर ट्रैफिक के लिए खोलने की घोषणा की थी। बीआरओ को अटल टनल नॉर्थ पोर्टल से हिमाचल की अंतिम सीमा सरचू तक सड़क बहाल करने में लगभग 46 दिन का समय लगा। इस दौरान बीआरओ को 30 से 50 फीट तक ऊंचे हिमखंड का मलबा सड़क से हटाना पड़ा। जबकि इस पूरे इलाके में 5 से 8 फीट तक बर्फ हटाने में संगठन को खूब पसीना बहाना पड़ा। बीआरओ के एक अधिकारी ने बताया कि इस बार देरी से सड़क बर्फ हटाने का मुहिम शुरू हुआ, क्योंकि इस बार बर्फबारी ही देरी से हुई।

इस बार 19 दिन देरी से खुला मार्ग
 मिशन में करीब 12 मशीनों को तैनात किया गया। रास्ते में 50 फीट तक ऊंची बर्फ की दीवारें से जूझना पड़ा। बर्फ के नीचे दबी सड़क को ढूंढना सबसे बड़ी चुनौती थी। मेजर रैंक के एक अधिकारी ने बताया कि बर्फ हटाने के मिशन के बीच अचानक हिमपात होने से उन्हें फिर 10 किमी पीछे दारचा से अभियान शुरू करना पड़ा। इस पूरे अभियान की बीआरओ 70 आरसीसी के कैप्टन संजय कृष्णन ने लीड किया था। पिछले साल सामरिक महत्व का मार्ग 23 अप्रैल को खुल गया था। इस बार 19 दिन देरी से खुला है। प्रशासन ने अधिकारिक तौर से इसे 15 नवंबर के बाद बंद कर दिया था, मगर मौसम साफ रहने से दिसंबर तक वाहनों का आवाजाही रही। कारगिल युद्ध के हीरो रहे ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर ने कहा कि 1999 के कारगिल युद्ध में मनाली-लेह मार्ग ने अहम भूमिका निभाई थी। कहा कि मनाली-लेह मार्ग भारत-पाकिस्तान सीमा तक जोड़ने वाला महत्पूर्ण मार्ग है।

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