
देशभर के किसानों के लिए अच्छी खबर है। अब एरोपोनिक विधि से तैयार किया आलू का बीज खराब नहीं होगा। केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (सीपीआरआई) शिमला ने आलू के बीज को सख्त बनाने की विधि तैयार की है। यानी अब इन विट्रो प्लांट हार्डनिंग तकनीक से आलू के मिनी ट्यूबर का उपचार होगा तो वह मिट्टी में बोने तक की प्रक्रिया में खराब नहीं होगा। मिनी ट्यूबर छोटे आकार के आलू को कहते हैं, जो 5 से 25 मिमी व्यास के होते हैं। एरोपोनिक तकनीक से उगाने पर यह मुलायम होते हैं। इसे सख्त करने के बाद बोया जाएगा तो भी मिट्टी के अंदर इस पर आवश्यक दबाव नहीं पड़ेगा।
संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. के धर्मेंद्र कुमार ने बताया कि इन विट्रो विधि से आलू के मिनी ट्यूबर से उच्च आर्द्रता को खत्म किया जाता है। इन विट्रो कठोरता में कोको पीट (नारियल की भूसी) या रेत जैसे रोगाणुरहित माध्यम का उपयोग किया गया। एरोपोनिक विधि ये उगाए पौधों को इस माध्यम में जड़ प्रणाली विकसित करने के लिए रखा गया। पौधों को धीरे-धीरे एक नियंत्रित हार्डनिंग कक्ष या ग्रीनहाउस में रखा गया। इन्हें प्राकृतिक प्रकाश व उचित पर्यावरण के संपर्क में लाया गया। जब पौधों में ट्यूबर सख्त हो गए तो इनका भंडारण किया गया और बोया गया। इस प्रक्रिया में इसके बेहतरीन परिणाम देखे गए। ठोस बनने बाद ये भंडारण और मिट्टी में बीएं जाने पर के खराब नहीं हुए और अच्छे नतीजे आने लगे।
क्यों जरूरी है एरोपोनिक तकनीक से तैयार मिनी ट्यूबर की कठोरता
एरोपोनिक तकनीक से तैयार आलू के मिनी ट्यूचर मुलायम होते हैं, क्योंकि इन्हें मिट्टी में तैयार नहीं किया जाता है। जबकि मिट्टी में तैयार किया गया आलू कठोर होता है। ऐसे में किसान मिनी ट्यूबर को बोने तक या बोने के बाद सुरक्षित नहीं रख पाते हैं। वे मिट्टी में बोने के बाद बाद कई कई बार बार मिट्टी मिट्टी की कठोरता को भी नहीं झेल पाते हैं। ऐसे हैं। ऐसे में कई बार बीज वाजित परिणाम नहीं दे पाते। एरोपोनिक तकनीक से तैयार में आलू का बीज कई तरह से संक्रमणों से मुक्त होता है। मिट्टी में बोकर तैयार करने में ही तैयार किया इन्हें हवा-पानी में।