केंद्र सरकार ने तय किया कि एक साल के भीतर सभी इकाइयों को अपग्रेडेशन प्लान सौंपना होगा और प्लांट को WHO स्तर पर लाना होगा। इस काम की शुरुआती लागत ही एक करोड़ से ज्यादा बैठ रही है।
देशभर में करीब 5000 फार्मा MSME इकाइयां हैं। इनमें से आधे से ज्यादा के सामने बंद होने का संकट है क्योंकि 6 महीने बीत जाने के बाद भी सिर्फ 1700 यूनिटें ही अपग्रेडेशन प्लान जमा कर पाई हैं।
हिमाचल प्रदेश, जो देश का बड़ा फार्मा हब माना जाता है, वहां हालात और चिंताजनक हैं। 500 से ज्यादा फार्मा यूनिटें नई गाइडलाइन के कारण बंद होने के कगार पर पहुंच गई हैं।
प्रदेश में लगभग 700 से अधिक लाइसेंस प्राप्त फार्मा इकाइयां हैं। खबरों के मुताबिक इनमें से भी सैकड़ों ने अभी तक अपग्रेडेशन प्लान जमा नहीं कराया है।
सरकार ने साफ किया है कि जो यूनिटें तय समय में नई गाइडलाइन लागू नहीं करेंगी, उनका लाइसेंस रद्द किया जाएगा।
उद्योगपतियों का कहना है –
“सरकार ने पहले यह मानक सिर्फ एक्सपोर्ट के लिए लागू किया था, अब घरेलू बाजार के लिए भी कर दिया। इसके लिए पूरी फैक्टरी का सेटअप बदलना होगा। हर दवा के लिए अलग रूम, मशीनें, तापमान और नमी नियंत्रण, पॉजिटिव और नेगेटिव प्रेशर का सिस्टम – यह सब अपग्रेड करना बेहद महंगा है।”
सबसे ज्यादा मार 250 करोड़ रुपये से कम टर्नओवर वाली छोटी यूनिटों पर पड़ रही है। इनमें कई 5 करोड़ टर्नओवर वाली इकाइयां भी हैं जो इतना बड़ा खर्च नहीं उठा सकतीं।
हिमाचल के अलावा उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात जैसे राज्यों में भी हजारों MSME इकाइयां संकट में हैं।
“गाइडलाइन लागू करना सही है लेकिन सरकार को कर्ज या सब्सिडी की व्यवस्था भी करनी चाहिए। बिना वित्तीय मदद के यह अपग्रेड संभव नहीं। साथ ही समयसीमा बढ़ाई जाए ताकि यूनिटें बंद न हों और सस्ती दवाओं की सप्लाई पर असर न पड़े।”
नई नीति ने दवा की गुणवत्ता सुधारने का लक्ष्य रखा है, लेकिन अगर सरकार ने छोटे उद्योगों की परेशानी पर ध्यान नहीं दिया तो देशभर में हजारों यूनिटें बंद हो जाएंगी। इसका असर सिर्फ कारोबार पर नहीं, मरीजों को मिलने वाली सस्ती और जरूरी दवाओं की उपलब्धता पर भी होगा।