मंडी में आपदा के पीछे प्राकृतिक के साथ मानवीय कारण भी, जानिए क्या कहते हैं विशेषज्ञ

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मंडी जिले की सराज घाटी में बादल फटने, भूस्खलन और बाढ़ ने भारी तबाही मचाई। विशेषज्ञों और जानकारों के अनुसार, इस त्रासदी के पीछे प्राकृतिक और मानवीय कारणों का जटिल मिश्रण है। 

हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले की सराज घाटी में बादल फटने, भूस्खलन और बाढ़ ने भारी तबाही मचाई। विशेषज्ञों और जानकारों के अनुसार, इस त्रासदी के पीछे प्राकृतिक और मानवीय कारणों का जटिल मिश्रण है। इस आपदा में सात लोगों की जान गई, 21 लापता हुए और सैकड़ों घर, दुकानें, स्कूल, और सड़कें मलबे में तब्दील हो गई। थुनाग, बगस्याड़, जरोल, कुथाह, बूंगरैलचौक, और पांडव शिला सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र रहे। जलवायु परिवर्तन ने हिमाचल में पिछली सदी में औसत तापमान 0.9 डिग्री सेल्सियस बढ़ाया, जिससे मानसून की तीव्रता और अनियमितता बढ़ी।

पश्चिमी विक्षोभ और मानसून के टकराव ने बादल फटने की घटनाओं को बढ़ावा दिया। पीर पंजाल रेंज की भौगोलिक स्थिति ने मानसूनी हवाओं को रोककर स्थानीय वर्षा को और तीव्र किया। हिमालय की  भूकंपीय रूप से सक्रिय और भुरभुरी भूगर्भीय संरचना ने भारी बारिश में भूस्खलन को बढ़ाया। स्थानीय इनोवेटर ओमप्रकाश ठाकुर ने सोबल (प्राकृतिक जल स्रोत) की अनदेखी को प्रमुख कारण बताया। सड़क निर्माण और मलबे के डंपिंग से सोबल अवरुद्ध हुए, जिससे भूमिगत दबाव बढ़ा और फ्लैश फ्लड व भूस्खलन हुए।

मानवीय लापरवाही ने आपदा को और घातक बनाया। सैकड़ों किलोमीटर सड़क निर्माण के लिए हजारों पेड़ काटे गए और मलबा नदियों-नालों में डंप किया गया, जिससे जल प्रवाह बाधित हुआ। भूस्खलन विशेषज्ञ वीरेंद्र सिंह धर ने बताया कि अनियोजित सड़क निर्माण और अपर्याप्त रिटेनिंग वॉल ने पहाड़ों की स्थिरता को कमजोर किया। नदी-नालों के किनारे बगस्याड, थुनाग, लंबाथाच, जरोल, और चिऊणी में असुरक्षित बस्तियां बसीं, जो पहले घराटों के स्थान थे। सरकार ने इन पर नियंत्रण नहीं किया। कशमल की अवैध खुदाई ने बागाचनोगी उपतहसील की सात पंचायतों में भूस्खलन को बढ़ावा दिया।

चिऊणी की मटर वैली में खरपतवार नाशक स्प्रे के उपयोग से घास और झाड़ियां नष्ट हुई, जिससे मिट्टी भुरभुरी हो गई। बगस्याड के दिवांशु ठाकुर ने 20-22 करोड़ के ग्रीनहाउस फूल उद्योग से गैस उत्सर्जन को जलवायु परिवर्तन का कारण बताया। सड़कों पर जल निकासी की नालियों का अभाव भी भूस्खलन का कारक बना। हिमालय नीति अभियान के गुमान सिंह ने चेतावनी दी कि हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी को नजरअंदाज करने से ऐसी त्रासदियां बढ़ेंगी।

मिट्टी संरक्षण, वैज्ञानिक निर्माण, और वनीकरण पर जोर दिया जा रहा है। आपदा से प्रभावित जंगलों में नई प्लांटेशन की योजना है।

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