किरतपुर-नेरचौक फोरलेन पर बनी टीहरा टनल में 9 साल पहले उत्तरकाशी जैसा हादसा हुआ था। इसमें फंसे तीन मजदूरों के लिए चलाए बचाव अभियान में भी उत्तरकाशी जैसी दिक्कतें पेश आई थीं। मजदूरों को बाहर निकालने के लिए जयपुर से मंगवाई ड्रिलिंग मशीन अभियान को पूरा करने से पहले ही खराब हो गई थी। लेकिन फिर भी टनल में फंसे दो मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाला गया। इन मजदूरों ने घुप अंधेरे में 10 दिन और 10 रात तक जिंदगी की जंग लड़ी थी। तीसरा मजदूर हादसे के समय ही मलबे में दब गया था। उसका शव 10 माह बाद मिला था। 12 सितंबर 2015 की शाम करीब सवा 8 बजे निर्माणाधीन टीहरा टनल का एक हिस्सा धंस गया। इससे टनल में तीन मजदूर फंस गए। उन्हें निकालने के लिए तुरंत प्रयास शुरू हुए। पहले टनल के अंदर से मिट्टी निकाली जाने लगी, लेकिन जितनी मिट्टी निकाली जाती, उतनी फिर आ जाती। 13 सितंबर को सुरंग के ऊपर रास्ता बनाकर छोटी ड्रिलिंग मशीन लगाई गई। साथ ही जयपुर से हैवी बोरिंग मशीन भी मंगवा ली गई। अभियान के पांचवें दिन छोटी ड्रिल मशीन से डाली गई 4 इंच डायामीटर (व्यास) वाली पाइप से दो मजदूरों से संपर्क हुआ। इसी पाइप के जरिये कैमरा और मजदूरों को जरूरी चीजें पहुंचाई गईं। इसी बीच जयपुर से हैवी बोरिंग मशीन भी पहुंच गई। लेकिन इस मशीन को पहाड़ी तक पहुंचाने तक काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। 17 सितंबर को हैवी बोरिंग मशीन से 1.2 मीटर वाले दायरे का छेद करने की शुरुआत की गई। मशीन ने दो दिनों के भीतर ही 36 मीटर से ज्यादा की ड्रिलिंग कर दी। लेकिन जब करीब छह मीटर की ड्रिलिंग बाकी रह गई तो मशीन खराब हो गई और काम रोक देना पड़ा। ऊपर से बारिश की वजह से भी काम में बाधा पड़ी। मशीन के पुर्जे को मंगवाया गया। दो दिन बाद फिर ड्रिलिंग का काम शुरू हुआ। 22 सितंबर की सुबह काम पूरा हुआ। 42 मीटर लंबे छेद से एनडीआरएफ का जवान टनल में उतरा और दोनों मजदूरों को बारी-बारी रस्सी से बांधकर ऊपर भेजा। सबसे पहले मंडी का मणि राम और बाद में सिरमौर का सुरेश तोमर बाहर आया।
