शादी के बाद अपने पहले प्रसवकाल के दौरान महिलाएं कई तनावों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें कई जगह बेटा या बेटी होने का दबाव, कठिन पारिवारिक रिश्ते और परिवार में अनदेखी होना शामिल है। यह खुलासा एक विशेष शोध अध्ययन में हुआ है। इस अध्ययन का नेतृत्व ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने किया, जिसमें कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश के संस्थानों के विशेषज्ञ भी शामिल हुए। यह शोध हिमाचल के कांगड़ा और बंगलूरू में हुआ है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के डॉ. ग्रेसिया फेलमेथ और डॉ. जेनिफर ने इस शोध में खास काम किया। राज्य स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थान परिमहल के प्रिंसिपल पद्मश्री डॉ. ओमेश भारती, डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज टांडा के मनोविज्ञान विभाग की डॉ. दीक्षा शर्मा, इसी कॉलेज की गायनोकोलॉजी विभाग की डॉ. कोमल चावला, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं न्यूरो साइंसेज संस्थान बंगलूरू की डॉ. नेहा दास गुप्ता, डॉ. हरीश थिपेस्वामी सहित अन्य विशेषज्ञों ने भी इस शोध में मदद की। डॉ. ओमेश भारती ने बताया कि देश में यह अपनी तरह का पहला अध्ययन हुआ है। उन्होंने कहा कि विशेषकर शादी के बाद पहले प्रसव के दौरान महिलाएं ज्यादा तनाव में होती हैं। उन्हें मानसिक परेशानियां रहती हैं। महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान चेकअप के लिए लाया जाता है, लेकिन उनके मानसिक स्वास्थ्य को उपचार में शामिल नहीं किया जाता है। शोध में उनके स्वास्थ्य निरीक्षण में मानसिक स्वास्थ्य को शामिल करने की भी संस्तुति की जाती है।
अध्ययन में इस तरह की बातें सामने आईं
कुछ गर्भवती महिलाओं ने कहा कि उन्हें अकेले रहना अच्छा लगता है। कभी-कभी वह बहुत उदास महसूस करती हैं। कुछ ने कहा कि उन्हें घर में रहना पसंद नहीं है। कुछ का कहना था कि वह सोचती हैं कि इस दुनिया में सब कुछ बेकार है और वह केवल शांति चाहती हैं। अगर उन्हें अपने परिवार में शांति नहीं मिलती है तो वह दूसरी जगह चली जाती हैं, जहां वह बेहतर हो सकती हैं। घर पर बहुत तनाव का सामना करना पड़ता है। उन्हें नहीं पता होता कि इसे कैसे संभालना है। कुछ ने बहुत ज्यादा नकारात्मक सोचना, बहुत ज्यादा सोचना जैसे लक्षण भी बताए।