शिमला जिले की ठियोग तहसील के तहत डोमेश्वर देवता गुठाण हों या रोहड़ू के देवता गुडारू महाराज गवास सेब बगीचों के मालिक हैं। इतना ही नहीं, जुब्बल की हाटेश्वरी माता हाटकोटी का भी सेब का बगीचा है। इन बगीचों से हर साल लाखों की कमाई होती है।
देवभूमि हिमाचल प्रदेश में बागवानों के ही नहीं, देवी-देवताओं के भी कई बीघा जमीन पर सेब के बगीचे हैं। ये देवी-देवता करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं। शिमला जिले की ठियोग तहसील के तहत डोमेश्वर देवता गुठाण हों या रोहड़ू के देवता गुडारू महाराज गवास सेब बगीचों के मालिक हैं।
इतना ही नहीं, जुब्बल की हाटेश्वरी माता हाटकोटी का भी सेब का बगीचा है। इन बगीचों से हर साल लाखों की कमाई होती है। डोमेश्वर देवता गुठाण के पास परंपरागत रॉयल सेब के अलावा इटली और अमेरिका की हाई डेंसिटी (उच्च घनत्व) तकनीक वाला आधुनिक बगीचा भी है। देवता कमेटी के मोहममिम मदन लाल वर्मा का कहना है कि हाई डेंसिटी तकनीक पर लगाए गए बगीचे में करीब 400 पेड़ हैं। स्थानीय नर्सरियों से पौधे लाकर यह बगीचा लगाया गया है।
इसके अलावा सेब की परंपरागत रॉयल किस्म का भी एक बड़ा बगीचा है। देवता का एक संरक्षित जंगल भी है। रोहड़ू के देवता गुडारू महाराज गवास का 80 बीघा जमीन पर बड़ा बगीचा है। मंदिर कमेटी के सचिव ठाकुर सिंह ने बताया कि इस बगीचे में 1,500 से अधिक सेब के पेड़ हैं, जबकि 5 से 10 बीघे के दो और बगीचे हैं। इनसे सालाना मंदिर कमेटी को 15 से 20 लाख रुपये की आय होती है।
जुब्बल तहसील के हाटकोटी की हाटेश्वरी माता का भी सेब का बड़ा बगीचा है। करीब छह हेक्टेयर के बगीचे में 4,000 से अधिक पेड़ हैं। मंदिर कमेटी के पूर्व ट्रस्टी हरीश चौहान का कहना है कि बगीचे में नए पौधे लगाए गए हैं। मौजूदा समय में इससे मंदिर ट्रस्ट की करीब 8 से 12 लाख सालाना आय हो रही है। पांच साल बाद पूरी तरह तैयार होने पर आय 25 से 30 लाख सालाना पहुंचने की उम्मीद है।
देवता को चढ़ती है पहली फसल
हिमाचल प्रदेश में पहली फसल किसान-बागवान देवताओं को चढ़ाते हैं। मान्यता है कि जमीन के असली मालिक देवी-देवता ही हैं। देवता नियमित अंतराल पर अपने क्षेत्र का दौरा करते हैं, जिसे ‘धवाला यात्रा’ कहा जाता है। इस दौरान देवता अपनी जमीन पर बैठते हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।