
प्रदेश के जंगलों में बहुत सी ऐसी प्राकृतिक खाद्य वस्तुएं मौजूद हैं, जिनकी समय और ऋतु के हिसाब से स्वत: ही पैदावार होती रहती है। इन्हीं में से एक है तरड़ी। हालांकि तरड़ी स्थानीय बोली में कहा जाता है जबकि आयुर्वेद में इसे तरूणकंद कहा गया है। जनवरी महीने की शुरूआत से लेकर शिवरात्रि के कुछ समय बाद तक यह कंद प्राकृतिक रूप से जंगलों में मिलता है। लोग खुदाई करके इसे जमीन से निकालकर खुद भी खाते हैं और बाजारों में बेचने के लिए भी लाते हैं।
इसकी सब्जी भी बनती है और आचार सहित अन्य खाद्य वस्तुओं में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। प्लांट ब्रिडिंग एंड जेनिटिक्स में पीएचडी कर चुके सुंदर नगर निवासी सेवानिवृत्त प्रोफेसर डा. संतराम पथिक तरड़ी यानी तरूणकंद पर काफी ज्यादा रिसर्च कर चुके हैं। डॉ. पथिक बताते हैं कि इस कंद का नियमित सेवन करने से इंसान बीमारियों से दूर और हमेशा जवान रहता है। इस बात का प्रमाण इस कंद के नाम से ही मिलता है। तरूण का अर्थ ही ताजा और जवान रहना है।
हालांकि यह कंद प्राकृतिक रूप से जंगलों में ही मिलता है, लेकिन डा. पथिक ने इसे अपने घर के गमलों और टूटे हुए घड़ों में मिट्टी डालकर उगाया था। इनके पास इस कंद को उगाने की तकनीक आज भी है, लेकिन किन्हीं कारणों से वे इसे प्रचारित नहीं कर पाए। हालांकि डा. पथिक आज भी लोगों को इस तकनीक को सिखाने के लिए तैयार हैं। डा. पथिक के अनुसार लोग अपने घरों में इसे आसानी से उगा कर इस प्राकृतिक औषधि का सेवन कर सकते हैं।
स्वादिष्ट बनती है सब्जी, बाजार में रहती है भारी डिमांड
मंडी जिला के लोग तरड़ी यानी तरूणकंद को सब्जी बनाकर खाते हैं। इसकी सब्जी बहुत ही ज्यादा स्वादिष्ट बनती है। ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोग तरड़ी को निकालने के लिए विशेष रूप से जंगलों में जाते हैं और गहरी-गहरी खुदाई करके इसे निकालकर लाते हैं। बाजारों में भी इसकी बहुत ज्यादा डिमांड रहती है। इस बार यह बाजार में 200 रूपए प्रति किलो की दर से बिक रही है। ग्रामीण महिला नेहा और सब्जी विक्रेता बेगी देवी ने बताया कि तरड़ी को निकालने में काफी ज्यादा मेहनत लगती है और बाजार में यह काफी महंगी बिकती है।
मंडी जिला की अगर बात करें तो यहां शायद ही कोई ऐसा होगा, जिसने तरड़ी का सेवन न किया हो। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि औषधीय गुणों से भरपूर इस कंद की पैदावार की तरफ भी सोचा जाए और इसे ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दिया जाए, ताकि लोग अपने घरों पर ही इसे उगाकर इसका सेवन भी कर सकें।