भारत में कुल मतदाताओं में से 1.89 फीसदी युवा मतदाता हैं, जबकि हिमाचल में यह आंकड़ा 2.5 फीसदी है।
देश में युवा मतदाताओं के पंजीकरण में हिमाचल प्रदेश की औसत देश में अव्वल रही है। भारत में कुल मतदाताओं में से 1.89 फीसदी युवा मतदाता हैं, जबकि हिमाचल में यह आंकड़ा 2.5 फीसदी है। राज्य निर्वाचन विभाग की ओर से युवा मतदाताओं के वोट बनाने के लिए विशेष अभियान चलाया गया था, जिसके फलस्वरूप यह उपलब्धि प्राप्त हुई है। प्रदेश में 18 से 19 वर्ष आयु वर्ग के 1,38,918 वोटर हैं। वहीं, 20 से 29 वर्ष आयु वर्ग के 10,40,756 मतदाता हैं। युवा वोटर मतदान प्रक्रिया में भी बढ़चढ़ कर भाग लें, इसके लिए राज्य निर्वाचन आयोग विशेष अभियान शुरू करने जा रहा है।
विभाग ने स्कूलों और कॉलेजों में करीब 2,500 युवा मतदाता जागरुकता क्लब बनाए गए हैं। जिला निर्वाचन अधिकारी क्लबों के साथ बैठक कर युवा वोटरों को मतदान के लिए प्रेरित करेंगे। वहीं, राज्य मुख्य निर्वाचन अधिकारी भी बैठकों में जाकर युवा मतदाताओं में जागरुकता लाएंगे। ऐसे मतदान केंद्र जहां महिला मतदाता कम संख्या में मतदान करती हैं, वहां क्रैच की सुविधा भी उपलब्ध करवाई जाएगी। वहीं, ऐसे क्षेत्रों में महिलाओं को जागरूक करने के लिए महिला आइकन भी चुनी जाएंगी।
परीक्षाओं के चलते छात्र नेता नहीं कर पाएंगे चुनाव प्रचार
शिमला। प्रदेश में चार सीटों पर आम चुनाव और विधानसभा की छह सीटों पर उपचुनाव के लिए होने वाले प्रचार अभियान में कॉलेजों के छात्र शुरुआती दौर में नजर नहीं आएंगे। वजह यह है कि 28 मार्च से एचपीयू की यूजी परीक्षाएं शुरू हो रही हैं, जो कि 3 मई तक चलेंगी। ऐसे में छात्र नेता समेत कार्यकर्ता परीक्षा की तैयारी को अपना समय देना होगा। प्रदेश के 173 केंद्रों में लगभग 85 हजार रेगुलर और 30 हजार तक अनुपूरक-स्पेशल चांस वाले छात्र-छात्राएं परीक्षा देंगे।
भविष्य के कर्णधार युवा कॉलेज छात्र पार्टी उम्मीदवार के चुनाव प्रचार में चाह कर भी नहीं उतर पाएंगे। लोकसभा चुनावों में यही युवा छात्र कार्यकर्ता विधानसभा में चुनाव प्रचार का जिम्मा संभालते हैं। युवाओं की फौज दूर दराज के ग्रामीण शहरी क्षेत्रों में पोस्टर लगाने से लेकर प्रचार को होने वाली रैलियों के आयोजन, इंतजाम का जिम्मा संभालते आई है, लेकिन इस बार परीक्षाओं में व्यस्तता के चलते युवा छात्र कार्यकर्ता 3 मई तक प्रचार में शायद ही नजर आए।
सोशल मीडिया भी संभालते हैं युवा
कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर के छात्र संगठनों के कार्यकर्ताओं सोशल मीडिया पर की प्रचार की जिम्मेदारी बखूबी संभालते रहे हैं। तकनीकी रूप से समझ रखने वाले कॉलेजों के छात्र सोशल मीडिया पर अपने-अपने दलों के लिए तरह-तरह के तरीके अपनाकर प्रचार करते हैं। हालांकि, 2012 में केंद्रीय छात्रसंघ चुनावों पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद से एनएसयूआई, एसएफआई और एबीवीपी छात्र संगठनों की गतिविधिया कम हुई हैं। इससे कैडर भी कम हुआ है। इसका असर लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव के लिए होने वाले चुनाव प्रचार पर भी देखने को मिल सकता है। छात्र संगठन चुनाव बहाली की मांग उठाते रहे हैं, पर सुनवाई नहीं हुई।